बांसवाड़ा। सज्जनगढ़ उपखंड क्षेत्र की ग्राम पंचायत सज्जनगढ़ टांडा, मंगल टांडा, रत्न पंचायत और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बहने वाला लगभग 120 फीट चौड़ा प्राकृतिक राजस्व नाला आज बड़े पैमाने पर अतिक्रमण की समस्या से जूझ रहा है। ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों का आरोप है कि नाले की सरकारी भूमि पर फर्जी पट्टों के माध्यम से अवैध आवंटन किया गया है, जिससे नाले का मूल प्रवाह बाधित हो गया है। ग्रामीण बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में इस नाले की भूमि पर योजनाबद्ध तरीके से कई फर्जी पट्टे बांटे गए, जिनमें कुछ ऐसे नाम भी शामिल हैं जिनका अस्तित्व ही संदिग्ध है। नाला अब निजी बाड़ों, मकानों और कृषि भूमि में तब्दील हो चुका है, लेकिन प्रशासन या राजस्व विभाग की ओर से अतिक्रमण हटाने या सीमांकन का कोई स्पष्ट प्रयास नहीं हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में स्पष्ट किया है कि प्राकृतिक जल स्रोतों, नालों, नदियों या जलाशयों के प्रवाह को रोकना अवैध एवं असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक, नालों पर अतिक्रमण पर्यावरणीय अपराध है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन माना जाता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी इस नाले को प्राकृतिक जल निकासी मार्ग बताया है और सीमांकन, अतिक्रमण हटाने तथा नाले की पुनर्स्थापना के निर्देश दिए थे। नाले की पूरी चौड़ाई का ड्रोन सर्वेक्षण कर सीमांकन कर नक्शा सार्वजनिक किया जाए। फर्जी पट्टों की जांच कर दोषियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेशों के अनुसार अतिक्रमण हटाकर नाले को पुनर्जीवित किया जाए।नाले के संरक्षण और हरियाली के लिए दीर्घकालिक योजना बनाई जाए। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन ने शीघ्र कार्रवाई नहीं की, तो वे जिला मुख्यालय पर धरना-प्रदर्शन, आमरण अनशन और न्यायिक कदम उठाने को मजबूर होंगे। यह नाला केवल जल निकासी मार्ग नहीं है, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की जीवन रेखा है, जो किसानों, जीव-जंतुओं और जल स्रोतों को जीवन देता है। इस पर अतिक्रमण और प्रशासन की निष्क्रियता से क्षेत्र में पर्यावरणीय और मानव त्रासदी की संभावना बढ़ गई है।