[बिजौलिया, बलवंत जैन] बिजौलिया की पावन भूमि पर विराजे महाविष्णु अवतार श्री बांके बिहारी चारभुजा नाथ की अद्भुत प्राकट्य लीला पर आधारित एक गरिमामयी भजन की रचना बिजौलिया के ही युवा गायक एवं कलाकार अनुज प्रजापत द्वारा की गई है। अनुज ने बताया कि इस भजन की प्रेरणा और आधार उन्हें बिजौलिया राजवंश के राव साहब स्वर्गीय राव सवाई चंद्रवीर सिंह से प्राप्त हुआ। उन्होंने स्वयं राव साहब के मुख से चारभुजा नाथ की प्राकट्य कथा और मंदिर स्थापना से जुड़ी पौराणिक व ऐतिहासिक लीलाओं को प्रत्यक्ष सुना और उसी सत्य कथा पर आधारित यह भजन तैयार किया। भजन में विस्तारपूर्वक वर्णित है कि कैसे चारभुजा नाथ की दिव्य मूर्ति प्रकट हुई और किस प्रकार विशेष चमत्कारों के साथ बिजौलिया में प्रतिष्ठित हुई। यह रचना न केवल आस्था का संदेश देती है, बल्कि बिजौलिया की सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक इतिहास को भी उजागर करती है। युवा कलाकार अनुज बिजौलिया की यह प्रस्तुत भक्ति रचना वर्तमान पीढ़ी को अपनी परंपराओं से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास है। वर्तमान में अनुज प्रजापत, शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पद्म भूषण से सम्मानित पंडित राजन-साजन मिश्रा के शिष्य डॉ सदाशिव गौतम पंडित से प्राप्त कर रहे हैं। संगीत की इस गहराई और भक्ति भाव के संगम से उन्होंने बिजौलिया की सांस्कृतिक परंपरा को पुनः जीवंत कर दिया है। भजन के माध्यम से न केवल चारभुजा नाथ की महिमा का प्रसार हुआ है, बल्कि स्थानीय संस्कृति और श्रद्धा का गौरव भी बढ़ा है।
 उन्होंने स्वयं राव साहब के मुख से चारभुजा नाथ की प्राकट्य कथा और मंदिर स्थापना से जुड़ी पौराणिक व ऐतिहासिक लीलाओं को प्रत्यक्ष सुना और उसी सत्य कथा पर आधारित यह भजन तैयार किया। भजन में विस्तारपूर्वक वर्णित है कि कैसे चारभुजा नाथ की दिव्य मूर्ति प्रकट हुई और किस प्रकार विशेष चमत्कारों के साथ बिजौलिया में प्रतिष्ठित हुई। यह रचना न केवल आस्था का संदेश देती है, बल्कि बिजौलिया की सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक इतिहास को भी उजागर करती है। युवा कलाकार अनुज बिजौलिया की यह प्रस्तुत भक्ति रचना वर्तमान पीढ़ी को अपनी परंपराओं से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास है। वर्तमान में अनुज प्रजापत, शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पद्म भूषण से सम्मानित पंडित राजन-साजन मिश्रा के शिष्य डॉ सदाशिव गौतम पंडित से प्राप्त कर रहे हैं। संगीत की इस गहराई और भक्ति भाव के संगम से उन्होंने बिजौलिया की सांस्कृतिक परंपरा को पुनः जीवंत कर दिया है। भजन के माध्यम से न केवल चारभुजा नाथ की महिमा का प्रसार हुआ है, बल्कि स्थानीय संस्कृति और श्रद्धा का गौरव भी बढ़ा है।
Author: AKSHAY OJHA
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