जयपुर। राजस्थान हाई कोर्ट ने स्कूल व्याख्यता भर्ती 2015 में मैरिट में आने वाली विधवा महिला को करीब 6 साल बाद नियुक्ति देने के आदेश दिए हैं। जस्टिस समीर जैन की अदालत ने यह आदेश सुनीता धवन की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
याचिका में कहा गया था कि उसके चार बच्चे होने के कारण आरपीएससी ने मैरिट में आने के बाद भी उसको नियुक्ति नहीं दी थी। जबकि अनुकंपा नियुक्ति में विधवा महिला को दो बच्चों के नियम से छूट दी जा रही हैं।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी को केवल दो से अधिक बच्चे होने के आधार पर खारिज करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के विपरीत है। जो समानता और गैर-भेदभाव का अधिकार देते है।
अदालत को अभिभावक की तरह काम करना होगा अदालत ने अपने आदेश में कहा कि हमारे पास रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह कहे कि याचिकाकर्ता आर्थिक रूप से स्थिर है। उसके पास आजीविका का कोई साधन भी नहीं है। ऐसे में यह न्यायालय याचिकाकर्ता ओर उसके बच्चों के प्रति सहानूभुति दृष्टिकोण रखता हैं।
अगर यह कोर्ट याचिकाकर्ता के लिए अभिभावक की तरह काम नहीं करता है, तो एक गरीब महिला और उसके बच्चों को खाने के लाले पड़ जाएंगे।
सरकार ने नियमों में किया संशोधन
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुनील समदड़िया ने बताया कि विधवा महिलाओं को अनुकंपा नियुक्ति में दो बच्चों के नियम से छूट दी जाती हैं। वहीं सीधी भर्ती में विधवा महिलाओं को छूट नहीं देना पूरी तरह से अवैध और गैर कानूनी हैं।
मैरिट में आने के बाद याचिकाकर्ता नियुक्ति पाने की हकदार थी। लेकिन आरपीएससी ने 11 दिसम्बर 2018 को उसकी नियुक्ति को रद्द कर दिया। जिसे 2019 में हमने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने 16 मार्च 2023 की अधिसूचना से इस विसंगति को दूर करते हुए सभी भर्तियों और अनुकंपा नियुक्ति में विधवा महिलाओं को दो बच्चों की बाध्यता से छूट प्रदान की। लेकिन साल 2023 से पहले के मामलों में इसे लागू नहीं किया।