चित्तौड़गढ़। जिले में पंचमी के साथ ही बंगाली समिति की ओर से मां की आराधना शुरू हो गई है। पिछले 8 महीनों से तैयार की जा रही मूर्तियों को स्थापित कर दिया गया है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन षष्ठी पूजन पर मां की मूर्ति को सजाया गया। महिषासुर का वध करती हुई मां दुर्गा को बनाने के लिए कारीगरों को कोलकाता से बुलाया गया है। 13 अक्टूबर को सिंदूर खेला के साथ इस उत्सव को खत्म किया जाएगा। समिति की ओर से आगे की तैयारियां भी पूरी कर ली गई है। इन पांचों दिनों में अलग-अलग तरह के प्रोग्राम्स का आयोजन भी किया जाएगा। नवरात्र के 9 दिनों के दौरान माता दुर्गा के 9 स्वरूपों की आराधना की जाती है। साथ ही व्रत रखना भी शुभ माना जाता है। बंगाल में नवरात्रि के दौरान दुर्गा पूजा का उत्सव मनाया जाता है। बंगाली समुदाय के लोगों के लिए मां दुर्गा पूजा के उत्सव का खास महत्व है। दुर्गा पूजा के उत्सव की शुरुआत वैसे तो पंचमी यानी 8 अक्टूबर को बोधन से हो चुकी है। लेकिन 9 अक्टूबर से इस उत्सव को प्रोपर ढंग से शुरू किया गया है।
बोधन के साथ शुरू हुई दुर्गा मां की आराधना
मां दुर्गा पूजा को लेकर बंगाली समिति के लोगों में काफी उत्साह है और इस दौरान शाम के समय आयोजित होने वाले कल्चरल कार्यक्रम की तैयारियां भी की जा रही हैं। वहीं, दूसरी तरफ बंगाली समिति के प्रणवेश राय और अमित चक्रवर्ती ने बताया कि 8 को महा पंचमी के दिन बोधन का प्रोग्राम हुआ। 9 अक्टूबर को षष्ठी तिथि पर आमंत्रण और अधिवास (कल्पारम्भ) यानी देवी आह्वान किया गया है। दुर्गा पूजा के दौरान दुर्गा के साथ-साथ देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। आज सुबह 10 बजे से सप्तमी की पूजा शुरू हो गई। अब शाम को महाआरती के बाद बच्चों का और सामूहिक डांस का आयोजन होगा।
13 अक्टूबर को होगा सिंदूर खेला
समिति के जयदेव सरकार और सागर दास ने बताया कि 11 अक्टूबर को महाष्टमी है। इस दिन सुबह 4 बजे से ही पूजा शुरू होगी। सुबह 5 बजे पुष्पांजलि होगी। संधि पूजा 6 से 6:30 बजे होगी। जिसके बाद नवमी की तिथि लग जायेगी। सुबह 9:00 से दोपहर 12:30 बजे तक नवमी की पूजा की जाएगी। दोपहर 12:30 बजे से 1 बजे तक पुष्पांजलि होगी। नवमी की पूजा के दौरान बलिदान और कुमारी पूजा भी होगी। फिर हवन और शाम को आरती होगी। इसी दिन आर्केस्ट्रा को बुलाया गया है। नीमच के अनुपम एंड पार्टी द्वारा परफॉर्मेंस दी जाएगी। 12 अक्टूबर को दशमी की पूजा की जाएगी। पुष्पांजलि के बाद घाट विसर्जन होगा। रात को बड़े और बच्चों का डांस कंपटीशन होगा। 13 अक्टूबर को प्रतिमा बरन, सिंदूर खेला का बाद प्रतिमा विसर्जन होगा।
कोलकाता से आए थे कारीगर
शेमोल दास, माणिक वर्मन और अभिषेक मुखर्जी ने बताया कि दुर्गा पूजा के लिए हुगली कोलकाता से 6 लोगों की टीम आई है। इसमें दो भाई प्रीतम बनर्जी और शुभम बनर्जी पुरोहित है। भोग बनाने के लिए उनकी मां संपा बनर्जी, ढोल के लिए कन्हैया, खाना बनाने के लिए विमल और साधन आए है। उन्होंने बताया कि दुर्गा मां की मूर्ति यही चित्तौड़गढ़ के कालिका बाजार में बनाई गई। इसके लिए 8 महीने पहले 10-12 कारीगरों को कोलकाता से ही बुलाया गया था। उसमें मां दुर्गा, सरस्वति, मां लक्ष्मी, गणेश और कार्तिकेय के दर्शन होंगे। यह एक प्लेटफार्म में तैयार करवाई जाएगी। जोकि बंगाली कल्चर के मुताबिक ही तैयार करवाई जा रही है।
महिषासुर मर्दिनी की पूजा
बंगाल में नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरूप की पूजा की जाती है। पंडालों में महिषासुर का वध करते हुई देवी की प्रतिमा बनाई जाती है। इसमें देवी त्रिशूल पकड़े हुए और उनके चरणों में महिषासुर होता है। देवी के साथ वाहन के रूप में शेर भी होता है। साथ ही अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी होती हैं। इनमें दुर्गा के साथ अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी बनाई जाती हैं। इस पूरी प्रस्तुति को चाला कहा जाता है। साथ ही दाईं तरफ देवी सरस्वती और भगवान कार्तिकेय होते हैं। बाईं तरफ देवी लक्ष्मी और गणेश जी होते हैं।