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November 2, 2024 2:15 am


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तकनीक और परम्परा के सामंजस्य से स्थापित होगा सामाजिक-आर्थिक संतुलन: प्रो. के. एल. श्रीवास्तव

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Pankaj Garg

सच्ची निष्पक्ष सटीक व निडर खबरों के लिए हमेशा प्रयासरत नमस्ते राजस्थान

मारवाड़ की विशेष परिस्थितियों में अग्रणी भूमिका निभाए डेजर्ट रिसर्च एसोसिएशन: प्रो. अजय शर्मा

सामाजिक और आर्थिक संघर्षों के बीच स्वयं को स्थापित करना ही जीवन है: रुमा देवी

सूचना तकनीक के द्वारा लोकल से ग्लोबल होगा समाज: प्रो. वसीनो

मानव सभ्यता के विकास के साथ ही मौजूद है ससांधन और समाज का संघर्ष: रौनक मेहता

जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में डेजर्ट रिसर्च एसोसिएशन द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. के.एल. श्रीवास्तव ने कहा कि “आर्थिक सामाजिक परिवर्तन के दौर में आर्टिफिशियल इंटलेजैंसी एवं तकनीक से नए अवसर पैदा हुए है वहीं शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में रोबोट एवं नवीन तकनीक से रोजगार की कमी आ सकती है। वर्तमान दौर में नवीन चुनौतियों के मद्देनजर मानव मस्तिष्क एवं नव मेधा शक्ति का विकास आवश्यक है। भारत के लिए मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था ने वैश्विक बाजार से जोड़ कर हमें नये अवसर प्रदान किए। आज वैश्विक बाजार में भारत के वस्त्र, कंप्यूटर हार्डवेयर, विज्ञान के क्षेत्र में लोग पहुँच पा रहे है इसमें मुक्त अर्थव्यवस्था की बड़ी भूमिका है। संगोष्ठी सचिव श्रवण कुमार ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन नेहरु अध्ययन केन्द्र के सहयोग तथा राजकीय कन्या महाविद्यालय झालामंड, जोधपुर, बी. आर. अंबेडकर महाविद्यालय, गंगानगर के संयुक्त तत्वाधान में किया गया।

उद्घाटन सत्र की विशिष्ट अतिथि फैशन डिजाइनर एवं बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओं की ब्रांड अंबेसेडर रुमा देवी ने अपने संघर्ष की कहानी के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र से वैश्विक स्तर पर रोजगार के कैसे अवसर पैदा हो सकते है, इसे रुबरु करवाया। रुमा देवी ने कहा कि छोटी उम्र में विवाह तथा पहले बच्चे की असमय मृत्यू के पश्चात ग्रामीण फैशन का वैश्विक फैशन तक पहुँचना संघर्ष और नवीन अवसरों के कारण संभव हो पाया। रुमा देवी ने कहा कि मेरी सामाजिक और शैक्षणिक पृष्ठभूमि ऐसी नहीं थी की मैं ग्रामीण महिलाओं द्वारा निर्मित वस्त्रों को अंतर्राष्ट्रीय फलक पर पहुँचा सकूं लेकिन सूचना तकनीक- सामाजिक संगठनों के आर्थिक सहयोग, ग्रामीण हाथ से बने कपड़ों की मांग ने अपने वैश्विक स्तर पर पहुँचने का अवसर दिया। आज रुमा देवी फाउडेंशन से चालीस हजार महिलाओं को रोजगार के अवसर मिल रहे है।

उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता के रुप में मारवाड़ मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. महेन्द्र आसेरी ने कहा कि पश्चिमी राजस्थान में ज्ञान-विज्ञान के अवसर कम थे लेकिन वर्तमान दौर में प्रत्येक जिले में मेडिकल कॉलेज, एम्स आदी खुलने से चिकित्सा के क्षेत्र में सुधार हुआ। इसके साथ ही सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए विपरित परिस्थितियों में भी प्रत्येक मानव आगे बढ सकता है। वर्तमान दौर में सूचना तकनीक ने ग्लोबल विलेज की परिकल्पना स्थापित कर दुनिया की दूरियों को समाप्त किया है।

समापन सत्र के मुख्य अतिथि एम.बी.एम. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अजय शर्मा ने की मारवाड़ की विशेष भौगोलिक-सामरिक और भूसंपदा परिस्थितियों के मद्देनजर डी.आर.ए. को शोध के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए तथा यह खुशी की बात की संगोष्ठी में इंडोनेशिया से प्रो. वशीनो एवं डॉ. एना, अमेरीका के इंडियाना विश्वविद्यालय से रौनक मेहता, थाईलैंड से . थानाकुन वांग वुन, डॉ. पेस्ट्रोर आर गुलेज एवं डॉ. रवीन चक्रवती- फिलीफांइस से, घाना से प्रो. इडैनेजर डोनाह ने अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी संयोजक डॉ. भरत कुमार ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में 600 के आसपास प्रतिभागीयों ने ऑफलाइन एवं ऑनलाइन अपने विचार व्यक्त किए तथा भारत में कर्नाटक से प्रो. राजलक्ष्मी एस.टी., पश्चिम बंगाल से प्रो. तापौस पाल, छत्तीसगढ़ से प्रो. राजशेखर, आगरा, ग्वालियर, दिल्ली, अहमदाबाद के विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए।

उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता के रुप में इंडोनेशिया की नगेरी सेमरंग विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान विभाग के उप निदेशक प्रो. वसीनों हुम ने कहा कि, भविष्य में सामाजिक-लैंगिग परिवर्तन पर शोध कार्य करना अत्यन्त आवश्यक है, गौरतलब है कि आज से 100 साल पहले महिलाएँ, निग्रो, दलित-आदिवासी वर्गों के लिए आर्थिक और सामाजिक समानता के अवसर मौजूद नहीं थे लेकिन लोकतांत्रिक राज्यों के निर्माण एवं मुक्त अर्थव्यवस्था ने सबके लिए अवसर प्रदान किए है।

अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में बतौर मुख्य वक्ता बनारस विश्वविद्यालय के प्रो. प्रेमप्रकाश शुक्ला ने कहा कि, राजस्थान कि विशेष भौगोलिक परिस्थितियों के कारण अन्न-जल की आशा में विश्व भर में मारवाड़ी पहुंचे तथा अपनी मेहनत से दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई। यदि मारवाड़ में भी अन्न-जल की प्रचुरता होती तो संघर्ष का जीवन जीने की ललक मन में पैदा ही नहीं होता। आर्थिक और सामाजिक चिंताएँ हमें समय के साथ चलना और आगे बढ़ना सिखाती है, उन्होंने बनारस विश्वविद्यालय का जिक्र करते हुए कहा कि देश के प्रतिष्ठित संस्थान में राजस्थान से 72 शिक्षक अपनी सेवाएं दे रहे है जो किसी दूसरे के केन्द्रीय विश्वविद्यालय में अपनी महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि प्रो. ज्ञान सिंह शेखावत ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के साथ-साथ हमें भौगोलिक बदलाव एवं आपदाओं में भी अवसरों की तलाश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कोराना काल में जहाँ मनुष्यों के सामने जीवन रक्षा के वैश्विक संकट पैदा हुए वहीं पर्यावरण की रक्षा, पुरातन परम्पराएँ, प्रकृति से जुड़ाव का महत्व भी पता चला। ऐसे में हमे सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में प्रकृति-जलवायु और नवीन अवसरों को तलाशना होगा। तकनीकी सत्र में कैली स्कूल ऑफ बिजनेस-इंडीयाना यूनिवर्सिटी ऑफ ब्लूमिंगटन-अमेरीका के शोधार्थी एवं आर्थिक एवं वाणिज्य सलाहकार रौनक मेहता ने मानव सभ्यता के विकास के साथ ही मौजूद है ससांधन और समाज का संघर्ष पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि परिवर्तन संसार का नियम है, इसे स्वीकार करते हुए हमें समय एवं परिस्थितियों के अनुरुप शिक्षित-समृद्ध और प्रकृति से सामंजस्य बनाकर आर्थिक और सामाजिक विकास के पायदानों पर आगे बढ़ना होगा। वाणिज्य संकाय के पूर्व डीन प्रो. डी.एस. खींची ने नेहरु काल से वर्तमान समय तक भारत में आर्थिक एवं सामाजिक परिवर्तनों के माध्यम भारत की विकास गाथा का रेखाचित्र खींचा।

डी.आर.ए. के संस्थापक अध्यक्ष प्रो. राजेन्द्र परिहार ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से हमारा प्रयास रहेगा कि हमें मरुक्षेत्र में साहित्य, समाज, संस्कृति, प्रकृति, भू-संसाधन वैविध्य के संबंध शोध के नए अवसर प्रदान कर युवा शोधार्थीयों को मंच प्रदान करें। संगोष्ठी में सर्वश्रेष्ठ पत्र वाचन के लिए श्रुति जैन (मोदी विश्वविद्यालय – सीकर) , स्वाधना दीक्षित (वनस्थली विद्यापीठ) , युवा शोधार्थी अवार्ड डॉ. खगेन्द्र-, सुखराम देवासी को प्रदान किया गया। कार्यक्रम की सह समन्वयक प्रो. आशा परमार ने बताया कि विभिन्न तकनीकी सत्रों में प्रो. अरविंद परिहार, प्रो. डी.एस. खींची, डॉ. शैलेन्द्र गहलोत, डॉ. प्रियंका यादव, डॉ. दीप्ती गौरा, डॉ. साधना, डॉ. मांगूराम, डॉ. कपिल दहिया, डॉ. राजेन्द्र सिंह खींची आदि ने अपने विचार प्रस्तुत किए तथा पत्रवाचन का संचालन किया। कार्यक्रम आयोजन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागीयों का डॉ. श्याम सिंह खींची ने धन्यवाद ज्ञापित किया तथा संगोष्ठी प्रतिवेदन प्रो. तॉपस पॉल द्वारा प्रस्तुत किया गया।

 

 

Author: AKSHAY OJHA

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