जयपुर। एक दलित नाबालिग से छेड़छाड़ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि नाबालिग से छेड़छाड़ के आरोपी का पीड़ित के साथ हुआ समझौता कोर्ट में कतई स्वीकार्य नहीं है। ऐसे किसी भी समझौते के आधार पर आपराधिक केस खारिज नहीं किया जा सकता। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के 4 फरवरी 2022 के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसके तहत 11वीं की छात्रा से छेड़छाड़ के आरोपी स्कूल शिक्षक पर केस खत्म कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी शिक्षक के खिलाफ दर्ज एफआईआर को भी फिर से लागू करते हुए कार्रवाई आगे बढ़ाने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अक्टूबर 2023 में पक्षकारों की बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हमें यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि दोनों पक्षों में समझौते से आरोपी का दोष सिद्ध होने की संभावना बेहद कम है। मगर यह आपराधिक कार्यवाही को रद्द करके आगे की जांच अचानक समाप्त करने का आधार नहीं बन सकता। सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग समझौते के आधार पर गंभीर आपराधिक मामले बंद करने के लिए नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा-
‘लड़की को जीवनभर परेशान कर सकता है‘
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में प्रसिद्ध अमेरिकी पोएट (कवि) एच डब्ल्यू लॉन्गफेलो की लिखी पंक्तियों का जिक्र करते हुए कहा- एक फटी हुई जैकेट को तो दोबारा से ठीक कर सकते हैं, लेकिन एक बच्चे के टूटे हुए दिल को दोबारा नहीं जोड़ सकते। इस तरह का अपराध एक लड़की के साथ होता है तो यह और भी भयानक होता है, क्योंकि यह न केवल उसे जीवनभर परेशान कर सकता है बल्कि उसके पारिवारिक जीवन को भी प्रभावित कर सकता है।
न्याय नहीं हुआ तो बच्चियों की पढ़ाई छूट जाएगी
गंगापुर में 6 जनवरी 2022 को गांव के स्कूल में 11वीं की छात्रा को कक्षा में अकेला पाकर शिक्षक ने छेड़छाड़ की थी। बच्ची ने मां को आपबीती बताई थी। पिता ने 8 जनवरी 2022 को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। लेकिन, आरोपी ने दबाव डालकर उसके पिता से समझौता कर लिया। समझौते के आधार पर 4 फरवरी 2022 को हाईकोर्ट ने केस रद्द कर दिया। समाजसेवी रामजीलाल बैरवा और जगदीश प्रसाद गुर्जर ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उनका कहना था कि न्याय न हुआ तो दलित समुदाय की अन्य लड़कियों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। कई शिक्षा से वंचित रह जाएंगी। यही नहीं, ऐसे अपराध करने वाले को यूं ही समाज में खुला नहीं छोड़ना चाहिए।
एएजी बोले- FIR रद्द करने से समाज में गलत संदेश जाएगा
अतिरिक्त महाअधिवक्ता (एएजी) शिवमंगल शर्मा ने कहा- बच्चों से जुड़े अपराध, विशेष रूप से यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण पॉक्सो एक्ट के तहत केवल निजी मामले नहीं आते हैं। इन अपराधों का समाज पर भी प्रभाव पड़ता है। हाईकोर्ट से मामले की एफआईआर रद्द करने से समाज में गलत संदेश जाएगा। मामले में केवल पीड़ित को ही न्याय नहीं मिले बल्कि पूरे समाज के लिए भी व्यापक स्तर पर होना चाहिए।