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February 16, 2025 5:29 pm


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आवां में खेलेंगे दुनिया का एकमात्र 80 किलो का दड़ा : रियासकाल का यह खेल अब देता है अकाल सुकाल का संकेत

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Pankaj Garg

सच्ची निष्पक्ष सटीक व निडर खबरों के लिए हमेशा प्रयासरत नमस्ते राजस्थान

टोंक ना अकाली गोल पोस्ट होता है और ना कोई रेफरी लेकिन, 80 किलो वजनी दड़े को हूबहू खेलते है फुटबाल की तरह। दुनिया में यह अजब-गजब खेल टोंक जिले के आवां कस्बे में हर साल 14 जनवरी को बारहपुरों (आवां कस्बे के आस पास के 12 गांव) के लोग रंग-बिरंगी पोशाक में खेलते है। तत्कालीन आवां रियासत से जुड़े सदस्य इसे बनवाकर गढ़ के चौक में लाकर दड़े को ठोकर मारकर इसकी शुरुआत करते है। फिर सामने गोपाल भगवान के चौक में इंतजार कर रहे चार – पांच हजार खिलाड़ी (ग्रामीण) खेलने के लिए टूट पड़ते है।

सेना में भर्ती के लिए होता था आयोजन

आस-पास के मकानों की छतों पर बैठी सैकड़ों महिलाएं, युवतियां खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने के हूटिंग करती है। कभी रियासत कालीन सेना में भर्ती करने के लिए इस खेल का आयोजन होता था और अब आजादी के बाद से इस खेल महत्व प्रदेश में अकाल-सुकाल से जुड़ गया है।

3 घंटे तक खेला जाता है

खेलते-खेलते दड़ा आवां के अखनियां दरवाजा की ओर चला जाता है तो प्रदेश में अकाल का संकेत देता है। और दड़ा दूनी दरवाजा की ओर चला जाता है तो सुकाल के संकेत मिलते है। दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक खेला जाने वाला यह दड़ा चौक में ही रह गया तो न तो अकाल माना जाएगा और ना सुकाल माना जाएगा। यह सामान्य साल का संकेत माना जाएगा।

विरोधी खिलाड़ी भी करते है मदद

इस गेम की सुखद बात यह है इसमे कोई गिर जाता है तो उसे विरोधी टीम के खिलाड़ी भी तत्काल उठा लेते है। ग्रामीणों का दावा है कि ऐसे 80 किलो के दड़े का आयोजन दुनिया में आवा के अलावा अन्य जगह कही भी नहीं होता है।

जूट से तैयार करते है दड़े को

इस दड़े को राजपरिवार के सदस्य गढ़ में तीन-चार दिन पहले जूट को रस्सियों से गूंथ कर तैयार करवाते है। अभी इसे तैयार कर करवा लिया है और इसका वजन पानी में भिगोकर 80 किलो कर दिया जाता है। 14 जनवरी को सुबह निकाल लिया जाता है। फिर उसे दोपहर 12 बजे खेलने के लिए गोपाल चौक में रखवा दिया जाता है। फिर राजपरिवार से जुड़े सदस्य या गांव के मुखिया इसके ठोकर मारकर गेम की शुरुआत करते है। इस दड़े को 22 साल से बना रहे आवां के रामकिशन मीणा ने बताया कि इसे राजा महाराजों के समय से बनाया जा रहा है।

पुलिस और प्रशासन का रहेगा पूरा जाप्ता

इसे और भव्य बनाने के लिए पंचायत प्रशासन भी सहयोग करती है। सरपंच दिव्यांश एम. भारद्वाज ने बताया कि इसे भव्य बनाने के लिए उनकी ओर से काफी प्रयास किया है। सैलानियों को भी आमंत्रित किया है। इस दिन जोरदार पतंगबाजी होती है। उसे भी शानदार तरीके से युवाओं की टोलियों द्वारा किया जाएगा। पुलिस और प्रशासन का भी पूरा जाप्ता रहेगा।

मेले जैसा रहता है माहौल

गांव में इस खेल का काफी महत्व है। इस दिन मेहमान भी इसे देखने के लिए दूर दराज से आते है। आवां में दिनभर लोगों को आवाजाही रहती है। विभिन्न तरह की दुकाने सजती है। पुलिस का अतिरिक्त जाप्ता भी कानून व्यवस्था के हिसाब से रहता है।

सेना में भर्ती के लिए खिलाते थे लोगों को

बताया जाता है कि रियासत काल में इस खेल की शुरुआत तत्कालीन समय राजा महाराजाओं की सेना में भर्ती के लिए की थी। इस खेल को ज्यादा देर तक खेलने वाले व्यक्ति को सेना में उसकी खेल कौशल को देखकर भर्ती किया जाता था। फिर लोकतंत्र आ गया। समय के साथ कुछ इसकी परंपरा भी बदल गई। इसके रिजल्ट पर लोगों की धारणा अकाल-सुकाल में बदल गई, जो ज्यादातर सही बैठता है।

Author: JITESH PRAJAPAT

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