जोधपुर (गजेन्द्र जांगीड़)। जोधपुर रेंज की साइक्लोनर पुलिस को एक और सफलता हाथ लगी है। टीम ने घेराबंदी कर 35 हजार के एक फरार इनामी तस्कर को गिरफ्तार किया है। वह मादक पदार्थ तस्करी का मुख्य सूत्रधार रहा है। वह जोधपुर रेंज के साथ एसओजी की रडार पर भी था। जोधपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक विकास कुमार ने बताया कि लम्बी लुकाछिपी के बाद मादक द्रव्यों की तस्करी में बड़े सूत्रधार सामराऊ जाखड़ों की ढाणी निवासी रूपाराम पुत्र खींयाराम को पकडने में कामयाबी हासिल हुई है। रूपाराम पिछले आठ साल से पुलिस की आंखों में धूल झोंकता फरार चल रहा था। उसके खिलाफ करीब आधा दर्जन प्रकरण राज्य के विभिन्न जिलों में दर्ज है। वह 35 हजार रुपए का इनामी है जिसमें 25 हजार का इनाम पाली से एवं 10 हजार रुपए का इनाम भीलवाड़ा जिले में घोषित है। आईजी विकास कुमार ने बताया कि शातिर रूपाराम लगातार मादक द्रव्यों की तस्करी इतनी चतुराई से करत कि पुलिस को जल्दी भनक तक नहीं लगती थी, तभी मात्र आधा दर्जन प्रकरणों में ही नामजद हो पाया। उसके खिलाफ पहला प्रकरण वर्ष 2010 में चित्तौडगढ़ जिले में दर्ज हुआ था। रूपाराम दो बार जेल की हवा खा चुका है। मादक द्रव्यों की बड़ी खेपें चित्तौड़, मध्यप्रदेश से मंगवाकर स्थानीय तस्करों को आपूर्ति करता था। दर्ज प्रकरणों में क्विंटलों में डोडा चूरा एवं कई-कई किलोग्राम अफीम बरामद हो चुकी है। जांच में पता चला कि रूपाराम अति महत्वकांक्षी रहा है। उसका 10वीं कक्षा तक पढ़ाई कर मन उचट गया। बाद में तरह-तरह के काम धन्धे किए। कभी पिता के पास रहकर खेती की, कभी ठेकेदार बनकर भवन निर्माण किया। कभी बीकानेर, कभी सोलर प्लांट में महाराष्ट्र में नौकरी की पर मेहनत से कमाए चन्द रुपयों के पेट की भूख तो शान्त होती रही, पर मन की महत्वकांक्षा हिलोरे भरती रही तथा दिमाग कुलबुलाता रहा। वह जल्दी अमीर बनना चाहता था। वह दिखाने को कभी ढाबा, कभी ट्रक ड्राइवरी करता रहा पर हकीकत में उसकी आड़ में मादक द्रव्यों की तस्करी के कारोबार को परवान चढाता रहा। इनाम घोषित होने के बाद रूपाराम राजस्थान छोडकर महाराष्ट्र सोलर प्लांट में कार्य करने लगा तथा गुर्गों से धन्धा बढ़वाता।
इस तरह आया पकड़ में ऑपरेशन नरनारायण (आरोपी बद्रीराम) के सफल होने के बाद रूपाराम काफी असहज हो उठा। बद्री से उसके निकट सम्बन्ध थे तो उसे भी गिरफ्तारी का डर सताने लगा। इसी डर से रूपाराम ने दिमाग लगाकर होली पर गांव आने की अपनी योजना स्थगित कर दी, क्योंकि सन्देह था कि साइक्लोनर टीम के गांव के आस-पास मंडरा रही होगी। होली बीतते ही गांव में परिवार की याद उसे विचलित करने लगी तथा उसने परिवार से मिलने की गुप्त योजना बनाई। योजना के तहत रूपाराम ने अपने गांव के निकटवर्ती क्षेत्र से दो चेलों को गाड़ी सहित इंदौर महाकाल दर्शन करने के नाम पर चित्तौडगढ़ बुलाया तथा उसी गाड़ी में पिछली सीट पर बीमार बन लेट कर गांव आने लगा। रूपाराम का मानना था कि पुलिस का मुख्य शक ड्राइवर व आगे की सीट पर ही रहता है। अगर वह बीमार बनकर पिछली सीट पर पड़ा रहेगा तो किसी को शक नहीं होगा। हालांकि किसी पर विश्वास न करने वाला रूपाराम आखिरकार अपने ही विश्वस्त पर विश्वास कर जाल में फंस गया। विश्वस्त की मुखबिरी ने साइक्लोनर टीम को गाड़ी का विवरण एवं साथ में चल रहे चेलों का मोबाइल नम्बर प्रदान कर दिया। सटीक सूचना पर पाली जिला के रास्ते के एक नाके पर अपना जाल बिछाकर साइक्लोनर टीम ने आठ सालों से आंखों में धूल झोंक रहे रूपाराम को गिरफ्तार कर लिया। आगे व पीछे दोनों तरफ से घिर जाने के बाद भाग नहीं सकने की सम्भावना समाप्त देखकर रूपाराम ने समर्पण कर दिया।