पहले कलक्टर और डीईओ को,फिर आरटीआई आवेदक को नहीं दी सूचना, अब सूचना आयोग को कर दिया गुमराह!
सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 का किस प्रकार से खुला माखौल जिला परिषद अलवर की ओर से उड़ाया जा रहा है, इसका एक उदाहरण देखने के लिए सामने आया है । एक आवेदक चंदन कौशिक ने अप्रैल महीने में जिला कलेक्टर और जिला शिक्षा अधिकारी से जिला परिषद की जिला स्थापना समिति की बैठक कारवाई विवरण की प्रतियां मांगी थी क्योंकि इन दोनों अधिकारियों के हस्ताक्षर भी मीटिंग मिनटस पर होते हैं। इसके बाद दोनों ही अधिकारियों ने अपने कार्यालय में यह सूचना उपलब्ध नहीं होने की बात लिखते हुए प्रकरण को मुख्य कार्यकारी जिला परिषद अलवर को अंतरित कर दिया। अंतरण के बाद भी सूचना नहीं मिलने पर आवेदन ने जिला प्रमुख के सामने पहली अपील पेश की । इसका भी कोई उत्तर को नहीं मिला तो राज्य सूचना आयोग में दूसरी अपील पेश करने पर जुलाई में जिला परिषद अलवर को दो अलग-अलग दूसरी अपील नोटिस जारी हुए जिसकी पेशी 27 सितंबर को है। नोटिस में राज्य सूचना आयोग ने निर्देश दिया था कि 21 दिन के अंदर राज्य सूचना आयोग और अपील करने वाले व्यक्ति को रजिस्टर्ड डाक से अपील के उत्तर की प्रति भिजवाई जाए। 2 महीने तक जिला परिषद ने राज्य सूचना आयोग के पत्र पर न तो कोई कार्रवाई की न हीं राज्य सूचना आयोग को यह बताया कि आवेदक को सूचना व्यक्तिगत रूप से दे दी गई है, लेकिन पेशी से ठीक महज कुछ घंटों पहले राज्य सूचना आयोग और आवेदक दोनों को पत्र भेजा गया कि आवेदक को व्यक्तिगत रूप से सूचना जून में दे दी गई है जबकि आवेदक चंदन कोशिक कहना है कि जिला परिषद की ओर से कोई व्यक्तिगत सूचना नहीं दी गई। न तो वह कभी जिला परिषद गया और न हीं उसने आवेदन में कभी अपना मोबाइल नंबर अंकित किया। जिला परिषद ने किस प्रकार व्यक्तिगत सूचना दी और किस प्रकार मुझसे संपर्क स्थापित किया ,इसकी जांच कराई जाए । साथ ही जो रसीद जिला परिषद अलवर की ओर से राज्य सूचना आयोग को भिजवाई गई है उसकी प्रति भी मुझे नहीं दी गई जिससे कि यह पता चल पा रहा की रसीद पर हस्ताक्षर मेरे हैं भी या नहीं। आवेदक कौशिक का कहना है कि यदि जिला परिषद ने सूचना उपलब्ध कराने का पत्र जून में ही तैयार कर लिया था तो इसकी सूचना जुलाई में राज्य सूचना आयोग का नोटिस जारी होने के बाद राज्य सूचना आयोग और आवेदक को क्यों नहीं दी । पेशी से ठीक 8 दिन पहले आवेदक की दूसरी अपील को खारिज करने के लिए पावती रसीद तैयार कर राज्य सूचना आयोग को भेजी गई है । चंदन कौशिक ने कहा कि जब तक उन्हें जिला परिषद अलवर की ओर से राज्य सूचना आयोग को भिजवाई गई रसीद की प्रति नहीं भेजी जाएगी तब तक यह साबित नहीं हो सकता कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मुझे सूचना दे दी है। सूचना आयोग के नोटिस में अंकित किए गए निर्देशों के अनुसार जिला परिषद को रजिस्टर्ड डाक से सूचना भिजवानी चाहिए थी लेकिन जिला परिषद ने ऐसा नहीं किया । यह भी गौरतलब है कि जुलाई में जब राज्य सूचना आयोग ने जिला परिषद अलवर को नोटिस जारी किया तो 21 दिन में सूचना उपलब्ध कराने का नोटिस दिया था जिसमें की रजिस्टर्ड डाक से पते पर भेजने के लिए कहा गया था लेकिन जिला परिषद के संबंधित अधिकारी अधिकारी कर्मचारियों ने राज्य सूचना आयोग के निर्देश के बाद भी 21 दिन में रजिस्टर्ड सूचना पते पर सूचना नहीं भेजी । आवेदक चंदन कौशिक का कहना है कि सूचना नहीं दिए जाने के पीछे बड़ा खेल है जो की आने वाले समय में सामने आ जाएगा। आवेदक चंदन कौशिक ने यह भी कहा कि जब जिला परिषद मीटिंग मिनट्स पर हस्ताक्षर करने वाले जिला कलेक्टर और जिला शिक्षा अधिकारी को ही बैठक कारवाई विवरण नहीं देते हैं तो भला मुझे कैसे दे देते इसलिए ही यह सारा खेल रचा गया। कौशिक ने कहा कि जब राज्य सूचना आयोग ने अपील का उत्तर रजिस्टर्ड डाक से मेरे घर भिजवाने के लिए कहा था तो जिला परिषद में सूचना को व्यक्तिगत रूप से देने का उत्तर वहां क्यों भिजवाया जबकि व्यक्तिगत रूप से मुझे कोई सूचना दी ही नहीं गई है। उल्लेखनीय है कि जिला परिषद अलवर की जिला स्थापना समिति की ओर से लिए गए कई फैसले विवादित हो गए थे। कुछ की शिकायत स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में भी की गई थी । कुछ अपात्र लोगों को शिक्षक और लिपिक बनाने का मामला भी सुर्खियों में रहा है । जिला स्थापना समिति के कई निर्णय विवादित हुए । उसी को लेकर आरटीआई लगाई गई थी।