नागौर। जिले के खींवसर उपचुनाव को लेकर राजनीतिक माहौल परवान पर है। इसी बीच आज भाजपा के जिला परिषद सदस्य एडवोकेट संजीव सिंह डांगावास ने पार्टी और जिला परिषद सदस्यता छोड़ने का ऐलान कर दिया है। प्रदेश सरकार के भूतपूर्व मंत्री और पूर्व नागौर सांसद भंवर सिंह डांगावास के बेटे संजीव सिंह ने पार्टी छोड़ते हुए प्रदेश संगठन पर जमकर निशाना साधा है। आज नागौर के एक होटल में प्रेस कांफ्रेंस कर संजीव सिंह ने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता और जिला परिषद की सदस्यता छोड़ दी है। एडवोकेट संजीव सिंह डांगावास ने पत्र में लिखा है कि आज बहुत भारी दिल से मैं संजीव सिंह डांगावास, पुत्र स्वर्गीय भंवर सिंह डांगावास भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हूं। 1992 में जिस पौधे को मेरा पिता ने इस मरुभूमि पर लगाया था, उसको भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ताओ ने जी जान लगा कर एक वट वृक्ष बनाया, बिना किसी पद, बिना किसी प्रलोभन के, अपना घर परिवार का समय संघठन को दिया। लेकिन आज इस संगठन में हमारे लिए सम्मान भी नहीं हैं। जिस मिर्धा परिवार के खिलाफ हमने सालों संघर्ष किया, जो भाजपा के कमल को सत्यानाशी का फूल कहते थे, जिन्होंने इस संगठन को बढ़ने से रोकने के लिए पूरी ताकत झोंकी, एक दिन शीर्ष नेतृत्व ने हमको सूचना दी कि अब इनका हृदय परिवर्तन हो गया हैं और ये अब हमारे संगठन का हिस्सा हैं। हमने इस फैसले को भी एक निष्ठावान कार्यकर्ता की तरह स्वीकार कर लिया। हम उस व्यक्ति का सम्मान करते हैं जो हमारे संघठन की विचारधारा से जुड़ता हैं।
लेकिन जहां से मैं देख रहा हूँ, ज्योति मिर्धा के संघठन का हिस्सा बनने और संघठन पर कब्जा करने का फर्क मुझे साफ़ दिखाई दे रहा हैं। आज हमारी स्थिति यह है कि एक छोटे से काम के लिए भी हमको कांग्रेस से आयी, लगातार चुनाव हारती नेत्री डॉ. ज्योति मिर्धा से सिफारिश लगानी पड़ रही हैं। नागौर में जो ज्योति कहेगी वह ही होगा की नीति मेरी समझ से परे हैं, मुझे अस्वीकार हैं। अगर हमारी सरकार में ही हमारी यह स्तिथि हैं तो कांग्रेस राज में क्या बुरा था। ज्योति का कहना हैं कि खींसर उपचुनाव रेवंतराम डांगा नहीं वह स्वयं ही लड़ रहीं हैं, ज्योति मिर्धा के दो चुनाव हारने के बाद भी संगठन नहीं समझा तो इस बार भी उनको ही लड़ा लेता, उनकी और संगठन की ग़लतफहमी दूर हो जाती। मेरे त्यागपत्र को विद्रोह समझने की भूल न की जाये, विद्रोह करना होता तो मैं चार साल पहले विद्रोह करके जिला प्रमुख बन सकता था, लेकिन पद की लालसा मेरे खून में नहीं हैं। यह त्यागपत्र मौजूदा हालत के प्रति मेरा विरोध हैं। हम अपने लोगो के काम नहीं करा सकते, हमको लोगों को जवाब देना भारी पड़ रहा हैं। संगठन किसी भी चलते फिरते को मुख्यमंत्री के बगल में बैठा रहा हैं और वरिष्ठ कार्यकर्ताओ के बैठने के लिए जमीन भी नहीं दे रहा हैं। दरियाँ बिछाने से मुझे गुरेज नहीं लेकिन बिछाने वालो को ही बैठने की जगह न मिलना मुझे स्वीकार नहीं। किसी और की हो न हो, मेरी ग़लतफहमी अब दूर हो गयी हैं, यह एक दिन में नहीं हुआ, बीते सालो में जिस तरह वरिष्ठ कार्यकर्ताओ का अपमान और उनकी अनदेखी कर प्रताड़ित करना भाजपा में रिवाज सा बन गया है, उसके बाद मुझे यह ठीक लगता है की मैं अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु इस संघठन से अलग हो जाऊं। मैं संघठन को नुकन पहुंचने का कोई इरादा नहीं रखता लेकिन अब जब दम घुटने लगा हैं, सांस लेना दूभर हो गया हैं, तो मैं अकेला ही भारी मन से अपना घर, अपना संघठन छोड़ के जाने के लिए मजबूर हूँ। आशा करता हूं कि मेरा यह विरोध शीर्ष नेतृत्व की आँखे खोलेगा। जिस पौधे को सींच के अपनी आँखों के सामने इतना बड़ा होते देखा है, उसका पतन देखना बहुत पीड़ादायक हैं।
इसके अलावा संजीव सिंह ने जिला परिषद सदस्यता छोड़ने के लिए जिला प्रमुख को त्याग पत्र भेजा है। पत्र में डांगावास ने लिखा है कि मैंने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, क्योंकि मैं भाजपा के चिन्ह पर निर्वाचित हुआ हूं। इसलिए नैतिकता अनुसार मेरा जिला परिषद् सदस्य बने रहना उचित नहीं है। अतः मैं जिला परिषद् की सदस्यता से भी इस्तीफा देता हूं।
डांगावास ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि जिला परिषद प्रमुख के चुनाव के समय 20 में से 15 सदस्य साथ थे, सबने कहा कि इन्हें(संजीव सिंह) को जिला प्रमुख बनाइए। लेकिन उस समय कांग्रेस से आए हुए एक आदमी को जिला प्रमुख बनाया गया। ये जिला प्रमुख पूरे जिले में कहीं भी घूमते हुए नजर नहीं आता है। जिला परिषद में हमारे निष्ठावान कार्यकर्त्ताओं के काम नहीं हाे रहे हैं। आज पार्टी के कार्यक्रम में एक सरपंच मंच पर बैठता है और पुराने वरिष्ठ कार्यकर्त्ता सामने नीचे बैठते हैं। आज स्थिति ये है कि हमारे काम नहीं हाे रहे तो हम मजबूर हैं। हम गांव में जवाब देने लायक नहीं हैं। भाजपा छोड़ी है लेकिन कोई दूसरी पार्टी ज्वॉइन नहीं कर रहा, राजनीति में सक्रिय रहूंगा। 30 साल हमने पार्टी की सेवा की। इन मिर्धाओं से दुखी होकर हम भाजपा को लेकर आए थे। अब भाजपा है ही नहीं। अब यहां कांग्रेस फूल हो गई है। यहां काम हो रहे हैं ज्योति मिर्धा के, अब ज्योति हमारे काम करेंगी या जिन्हें कांग्रेस से साथ में लेकर भाजपा में आई हैं, उनके काम करेंगी? भाजपा में जिनके पास आत्मसम्मान है वो ज्योति के पास नहीं जाएगा, वो जाएगा संगठन के पास और संगठन लाचार है। हाल ही में उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी जब आईं तो उनका स्वागत रिछपाल मिर्धा ने कुचेरा में एक कांग्रेस जनप्रतिनिधि के घर पर किया तो ऐसे में कहां है बीजेपी? भाजपा के लोगों को बुलाया ही नहीं गया। ये लोग भाजपा में नहीं है, इनका मुखाैटा भाजपा का है। खींवसर उपचुनाव को लेकर डांगावास ने कहा कि ज्योति तो खुद कह रहीं हैं कि ये चुनाव वो खुद लड़ रही हैं। गजेंद्र शेखावत ने कहा कि डांगा के लड़ने से पार नहीं पड़ेगी, ज्याेति के लड़ने से ही पार पड़ेगी। भाजपा संगठन में किसी की हिम्मत नहीं कि ज्योति के सामने खड़ा हो जाए, ये हमें मंजूर नहीं है। नागौर भाजपा के सभी बड़े नेता सिर्फ पार्टी मीटिंग में शामिल होने आते हैं, उन्होंने कभी गांवों में पार्टी का प्रचार नहीं किया। खींवसर में भाजपा चुनाव नहीं लड़ रही है। पार्टी के प्रत्याशी के अलावा संगठन का कोई पदाधिकारी वहां नहीं घूम रहा है। प्रचार सभाओं में पार्टी के कैडर बेस लोग मंच पर होने चाहिए लेकिन वो नहीं हैं। नागौर में भाजपा नहीं है सिर्फ ज्योति है। अभी भाजपा मतलब ज्योति। दिल्ली में बैठा हुआ एक पावरफुल आदमी वहां इनको आगे बढ़ा रहा है और इनका पक्ष ले रहा है, भाजपा लीडरशिप को परेशान कर रहा है। ज्योति कह रही है कि चुनाव वो लड़ रही है तो फिर चुनाव लड़ ले। रेवंतराम सीधा आदमी है उसे क्यों मोहरा बनाया जा रहा है? मेरी भाजपा से अपील है कि इन्हें पार्टी से बाहर निकालो। उधार की सेना से लड़ाई नहीं होगी। इन्हें शामिल होना है तो सेना में शामिल हों, उधार का सेनापति ना बनें।