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January 19, 2025 2:16 am


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2 बेटियों को डेढ़ महीने से है परिजनों का इंतजार : एक है डेढ़ साल की तो दूसरी 16 साल की मूकबधिर, बेसहारा हालत में मिली थी

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Pankaj Garg

सच्ची निष्पक्ष सटीक व निडर खबरों के लिए हमेशा प्रयासरत नमस्ते राजस्थान

चित्तौड़गढ़। शहर के 2 अलग-अलग जगहों से 2 बालिकाएं एक महीने के अंदर बेसहारा हालत में मिली। दोनों ने ही अच्छे कपड़े पहन रखे थे। जिससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोनों ही बच्चियां अच्छे घर से होगी। लेकिन दोनों ही बच्चियों को क्यों और किसने बेसहारा छोड़ दिया है, ये कई दिन निकल जाने के बाद भी पहेली बना हुआ है। इनमें से एक बालिका सिर्फ डेढ़ से 2 साल की है, जो बोल कर अपना पता नहीं बता पाएगी। दूसरी बालिका है तो 16 साल की, लेकिन मूकबधिर होने के कारण अपने बारे में समझाने में भी सक्षम नहीं है। ऐसी हालत में बाल कल्याण समिति की ओर से लगातार कोशिश जारी है। फिलहाल डेढ़ साल की बालिका को शिशु गृह में और 16 साल की बालिका को उदयपुर के राजकीय बालिका गृह में शिफ्ट किया गया है।

पन्नाधाय बस स्टैंड पर अकेली 10 रुपए लिए मिली बालिका

13 दिसंबर को थाना कोतवाली में लैंडलाइन की घंटी बजती है और बताया जाता है कि एक बच्ची पन्नाधाय बस स्टैंड पर अकेली काफी देर से बैठी है। पुलिस मौके पर जाती है और बालिका से बात करने की कोशिश करती है। बालिका पुलिस को कोई भी जवाब नहीं देती, इस पर पुलिस को लगा कि बच्ची घबराई हुई है। पुलिस ने आसपास उसके माता-पिता की तलाश शुरू कर दी। काफी ढूंढने के बाद भी जब बच्चों के माता-पिता का पता नहीं चला तो पुलिस ने फिर से बालिका से पूछने की कोशिश की। इस बार भी बालिका कुछ नहीं बोल पाई। तब पुलिस भी समझ गई की बालिका मूकबधिर है। वो ना तो सुन सकती है और ना बोल सकती है। बालिका को तुरंत पुलिस अपने साथ बाल कल्याण समिति लेकर गई। बालिका को देखकर उसकी उम्र 16 साल बताई जा रही है। बाल कल्याण समिति ने बच्ची का मेडिकल करवाया, जिसमें बच्ची बिल्कुल स्वस्थ पाई गई।

साइन लैंग्वेज की नहीं है जानकारी

बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष प्रियंका पालीवाल ने बताया कि बालिका को जब हमारे पास लाया गया तो हमें इस बात की जानकारी थी कि वह ना तो बोल सकती है और ना ही सुन सकती है। ऐसे में हमने चंदेरिया के बहुउद्देशीय मूकबधिर स्कूल से काउंसलर को बुलाया। उन्होंने काफी देर तक बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन बालिका को साइन लैंग्वेज की जानकारी नहीं है। शायद वह कभी भी मूकबधिर स्कूल में पढ़ाई करने नहीं गई। हमने बच्ची को लगातार कुछ दिनों तक चंदेरिया स्कूल में कुछ घंटे के लिए भेजा था ताकि वहां पर अन्य बालिकाओं के साथ वह एडजस्ट कर शायद कुछ बता सके लेकिन यह भी सक्सेस नहीं हुआ। बालिका के बारे में अधिकृत सभी व्हाट्सएप ग्रुप और पुलिस थाना अधिकारियों के ग्रुप में यह सूचना डाली गई। लेकिन वहां से भी कोई पॉजिटिव रिस्पांस नहीं आया। बालिका जब पन्नाधाय बस स्टैंड में मिली थी तब वह साफ सुथरी और अच्छे कपड़े पहनी हुई थी। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद बच्ची किसी अच्छे परिवार से ही है।

उदयपुर में किया शिफ्ट

मंगलवार शाम तक भी जब उसके परिवार का कुछ पता नहीं चला तो उसे उदयपुर के राजकीय बालिका गृह में भिजवा दिया गया है। अगर माता-पिता का पता चल जाता है तो पूरी जांच के बाद बालिका को उन्हें सौंप दिया जाएगा और अगर माता-पिता का कुछ पता नहीं चलता है तो 18 साल तक बालिका को वही रखा जाएगा। बालिका के पास 10 रुपए भी मिले थे। हो सकता है परिजन जानबूझ कर छोड़ कर गए है। हालांकि ये जांच का विषय है कि जानबूझ कर छोड़ा गया है या बालिका भटक गई है।

रेलवे स्टेशन के पार्किंग एरिया में मिली डेढ़ साल की खुशी

इसी तरह, 13 नवंबर को रेलवे स्टेशन के पार्किंग एरिया में एक मासूम बच्ची हंसती खेलती हुई अकेली मिलती है। उसकी उम्र सिर्फ डेढ़ से 2 साल की है। बच्ची की जानकारी आरपीएफ और जीआरपी पुलिस को दी गई। पुलिस बालिका ने तुरंत चाइल्डलाइन को कॉन्टैक्ट कर बच्ची को बाल कल्याण समिति तक पहुंचाया। बच्ची अनजान जगह पर पहुंची लेकिन हंसते खेलते हुए पहुंची। अध्यक्ष प्रियंका पालीवाल बताती है कि दूसरी जगह आने से अमूमन बच्चे रोना शुरू करते हैं। लेकिन डेढ़ साल की यह बच्ची खुद भी हंसी और सबके चेहरे पर भी मुस्कान ले आई। इसलिए इसका नाम खुशी रख दिया है। खुशी का भी मेडिकल करवाया गया था। आश्चर्य की बात है कि खुशी भी अच्छे कपड़े पहनी हुई मिली, जिससे उसके अच्छे घर से संबंध होने का पता चल रहा है।

1 साल बाद हो सकती है लीगल फ्री

एसपी ऑफिस में एक लेटर लिखकर भेजा गया है, जिसमें लिखा है कि अगर गुमशुदा बालिका की कोई रिपोर्ट दर्ज हुई हो तो तुरंत सूचना दे। पुलिस ने भी पूरे रेलवे स्टेशन के आसपास सब जगह ढूंढ लिया, लेकिन कहीं से भी माता-पिता का पता नहीं चला। बच्ची को शिशु गृह में रखा गया है। वह पहले दिन से ही यहां सबसे घुल मिल गई है। उसको देखते ही चेहरे पर अलग ही खुशी आ जाती है। उन्होंने बताया कि अगर माता-पिता मिल जाते हैं तो जांच और काउंसलिंग के बाद बच्चे को उन्हें दे दिया जाएगा। लेकिन नहीं मिलते हैं तो लगभग 1 साल बाद बच्ची को लीगल फ्री किया जाएगा। इसके बाद खुशी को अडॉप्ट भी किया जा सकेगा। अगर माता-पिता मिल जाते हैं और जांच के दौरान कुछ गड़बड़ी मिलती है तो ऐसी कंडीशन में खुशी को फोस्टर केयर भी भेजा जा सकता है। फिलहाल उम्मीद की जाती है कि दोनों ही बालिकाओं को उनके माता-पिता मिल जाए। इनके द्वारा जान पाना भी मुश्किल हो रहा है कि यह चित्तौड़गढ़ जिले से ही है या किसी अन्य जिला या राज्य से है।

Author: JITESH PRAJAPAT

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