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February 9, 2025 3:29 am


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25 साल पुराने रिटायर्ड रेल कोच जोधपुर में मोडिफाई : जोधपुर रेलवे वर्कशॉप में तैयार 101 डिब्बों से देशभर में हो रहा माल लदान

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Pankaj Garg

सच्ची निष्पक्ष सटीक व निडर खबरों के लिए हमेशा प्रयासरत नमस्ते राजस्थान

जोधपुर। उत्तर पश्चिम रेलवे के लगातार आधुनिक हो रहे जोधपुर स्थित रेलवे वर्कशॉप से एनएमजीएचएस कोच अपनी विशेष पहचान बना चुके हैं। अब ट्रेन के ये डिब्बे देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। यहां के एक्सपर्ट्स 25 साल तक ट्रेनों में उपयोग के बाद रिटायर हो चुके डिब्बों को मॉडिफाई करके नया स्वरूप दे रहे हैं। इससे ये 10 साल और उपयोग में लेने योग्य होंगे।

NMGHS यानी न्यू मोडिफाइड गुड्स हाई स्पीड कैरिअर

रेलवे में माल लदान के लिए सालों पहले एनएमजी डिब्बे शुरू किए गए थे, जो 75 किमी प्रति घंटा की रफ्तार के लिए उपयुक्त हुआ करते थे। इसके बाद इसमें और सुधार करके एनएमजीएच कोच और वर्तमान में एनएमजीएचएस डिब्बे बनाए जा रहे हैं, जो 110 या इससे अधिक की स्पीड के लिए भी उपयुक्त हैं। बिना खिड़की और बंद दरवाजों वाली एनएमजीएचएस के साइड में कुल चार दरवाजे हैं, जिन्हें आवश्यकतानुसार माल लदान या खाली करने में प्रयुक्त किया जाता है। चूंकि, ये डिब्बे ट्रेनों के ऐसे कोच होते हैं, जो 25 साल तक उपयोग के बाद रेलवे यात्री सेवा की दृष्टि से रिटायर हो चुके होते हैं। जोधपुर रेलवे वर्कशॉप पिछले चार साल से ऐसे ही कोच को मोडिफाई कर 10 साल और उपयोग करने योग्य कर देता है, जिन्हें एनएमजीएचएस कहा जाता है और अब तक यहां से तैयार 101 कोच उपयोग किए जा रहे हैं।

निजी कंपनियों की ओर से बढ़ रही डिमांड

जोधपुर डीआरएम पंकज कुमार सिंह का कहना है कि रेलवे में माल लदान की दृष्टि से एनएमजीएचएस डिब्बों की महत्वपूर्ण भूमिका है। निजी कंपनियों की ओर से सुरक्षित माल लदान के लिए इनकी डिमांड भी लगातार बढ़ती जा रही है। रेलवे वर्कशॉप में तैयार इन्हीं कोच की एक पूरी ट्रेन तैयार हो सकती है, जिन्हें कंपनियों की आवश्यकतानुसार 24 डिब्बे तक लगाकर माल लदान में प्रयुक्त किया जा सकता है। इससे उन कंपनियों को सड़क मार्ग जैसी जोखिम से तो निजात मिलती ही है, साथ ही साथ तेज रफ्तार से समय की बचत और रोड ट्रांसपोर्ट से कई गुना कम किराया चुकाना पड़ता है।

सिंह के अनुसार- रेल पटरियों पर 25 सालों तक दौड़ने के बाद आईसीएफ कोच को पैसेंजर ट्रेन से रिटायर कर दिया जाता है और ऐसे डिब्बों को एनएमजीएचएस रैक के नाम से ऑटो कैरियर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इससे पहले इसके सभी खिड़कियां और दरवाजे सील कर दिए जाते हैं।

रेफ्रिजरेटर की तरह रैक्स सिस्टम होगा

डीआरएम सिंह ने बताया- इस वैगन को इस तरह से तैयार किया जाता है ताकि इसमें कार, ट्रैक्टर, मिनी ट्रक और दुपहिया वाहनों को आसानी से लोड-अनलोड किया जा सकें। इसके अतिरिक्त इस तरह के डिब्बे में रेफ्रिजरेटर की तरह रैक्स सिस्टम भी विकसित किया गया है जिससे इसमें सब्जियों का लदान भी किया जाता है।

डिब्बे को मॉडिफाई करने के दौरान उसके भीतर से सभी सीटों,लाइट और पंखों को हटा कर लंबा हॉलनुमा आकार दे दिया जाता है और रोशनी के लिए सिर्फ डिब्बे की छत पर होल रखे जाते है ताकि शॉर्ट सर्किट की आशंका न हो। कोच के पिछले हिस्से में एक बड़ा दरवाजा बनाया जाता है ताकि आसानी से सामान लोड या अनलोड किया जा सके।

एमएमजी कोच और जोधपुर रेलवे वर्कशॉप

मुख्य कारखाना प्रबंधक मनोज जैन ने बताया- जोधपुर रेलवे वर्कशॉप से पहला एनएमजी कोच 23 नवंबर 2020 को तैयार होकर निकला जिसकी सफलता को देखते हुए उसे 2020-21 में 35,2021-22 में 10 और 2023-24 में 29 तथा चालू वित्त वर्ष में 120 रिटायर आईसीएफ डिब्बों को एनएमजीएच एस डिब्बों में तब्दील करने का लक्ष्य दिया गया है जिसमें से 14 जनवरी तक 27 एनएमजीएचएस डिब्बे तैयार कर मंडलों को उपयोग के लिए दे दिए गए हैं । उनका कहना है कि लक्ष्यों की पूर्ति कारखाना को मिलने वालों कंडम डिब्बों की आपूर्ति पर निर्भर करती है।

एक आईसीएफ कोच को एनएमजीएचएस में बदलने पर 11.50 लाख का खर्च

सीनियर डीसीएम विकास खेड़ा ने बताया- एक रिटायर हो चुके आईसीएफ डिब्बे को वर्कशॉप में एनएमजीएचएस डिब्बे में तब्दील करने में करीब 11 लाख 50 हजार रुपए की लागत आती है। इसे सामान्य तौर पर 16 दिनों में तैयार कर दिया जाता है। बड़ी बात यह है कि इसके लिए गार्ड एसएलआर, जनरल और स्लीपर डिब्बे ही काम में लिए जाते हैं तथा भारतीय रेलवे में इन डिब्बों का वाणिज्यिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण उपयोग है।

Author: JITESH PRAJAPAT

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