सिरोही। जिले के पॉक्सो विशेष कोर्ट ने दुराचार के मामले में आरोपी को दोषमुक्त कर दिया है। साथ ही मामले की जांच में गंभीर खामियां पाते हुए तत्कालीन मंडार थानाधिकारी भंवरलाल के खिलाफ फौजदारी मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
विशेष न्यायाधीश अनूप कुमार पाठक की अदालत ने पाया कि थानाधिकारी ने राजस्थान उच्च न्यायालय के संरक्षण आदेशों की अवहेलना की। अधिकारी ने पीड़िता और आरोपी के लिव-इन रिलेशनशिप के महत्वपूर्ण तथ्य को जानबूझकर दबाया। इतना ही नहीं, उच्च न्यायालय के आदेश के विपरीत पीड़िता को उसके परिजनों के सुपुर्द कर दिया, जबकि कोर्ट ने परिजनों के विरुद्ध ही संरक्षण आदेश जारी किया था।
मामला 27 जुलाई 2023 का है, जब एक विवाहिता ने मंडार थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। महिला ने आरोप लगाया था कि एक युवक पिछले 4 महीने से उसे फोन पर परेशान कर रहा था और शादी के लिए दबाव बना रहा था। मना करने पर आरोपी ने जहर की शीशी की फोटो भेजकर धमकी दी और 19 जुलाई की रात करीब 11:30 बजे सफेद कार में जबरन ले गया।
न्यायालय ने पाया कि दूषित जांच के कारण आरोपी को एक महीना दो दिन न्यायिक हिरासत में रहना पड़ा और एक साल तक न्यायालय की निगरानी में रहना पड़ा। विशेष लोक अभियोजक मोहन सिंह देवड़ा के अनुसार, यह मामला पुलिस द्वारा की गई लापरवाह जांच का स्पष्ट उदाहरण है।
यह हुआ था मामला
विवाहिता और युवक ने जोधपुर में लिव इन रिलेशनशिप में रहने का करार पत्र हाईकोर्ट जोधपुर में पेश किया। साथ ही परिवारजनों से अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस संरक्षण की मांग की। जिस पर न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक सिरोही को पीड़ितों को संरक्षण देने के आदेश जारी किए थे, लेकिन मंडार के तत्कालीन थाना अधिकारी व जांच अधिकारी भंवरलाल ने राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर के आदेश को रिकॉर्ड में ही नहीं लिया, बल्कि गलत रूप से जांच करते हुए युवक को रेप का आरोपी बताकर न्यायालय के समक्ष पेश किया और उसे जेल भेज दिया था, जिसके चलते युवक को एक महीना दो दिन न्यायिक अभिरक्षा में रहना पड़ा।
थाना अधिकारी ने स्वीकार किया उसने आदेशों को कागज में नहीं लिया
पॉक्सो न्यायालय में जांच अधिकारी भंवरलाल ने बयानों में बताया कि उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर द्वारा पारित आदेश को अनुसंधान में नहीं लिया है, और ना ही पुलिस अधीक्षक के आदेशों को माना,
न्यायालय ने यह भी लिखा
पॉक्सो विशेष न्यायालय ने यह भी लिखा कि यह आपत्तिजनक एवं दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य की थानाधिकारी जैसे महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत व्यक्ति को उच्च न्यायालय के पारित आदेश के प्रभाव की जानकारी नहीं हो तथा वह मनमर्जी से उच्च न्यायालय के आदेश को नजरअंदाज कर दे। अनुसंधान अधिकारी का पक्षपाती होना इस तथ्य से भी प्रकट होता है कि अनुसंधान अधिकारी ने आदेशों को जांच में या कागजों में नहीं लिया।
अनुसंधान अधिकारी तत्कालीन मंडार थानाधिकारी भंवरलाल पुत्र मूलाराम के खिलाफ आरोपी को नुकसान पहुंचाने की नियत से कोर्ट के आदेशों की अवहेलना की गई। जांच अधिकारी के खिलाफ अभियुक्त के विरूद्ध गलत एवं विधि अनुसंधान कर आरोप प्रमाणित मानकर आरोप पत्र प्रस्तुत करने के लिए धारा 166, 166ए, 201, 204 तथा 211 भारतीय दंड संहिता में कार्यवाही किया जाना आवश्यक एवं न्याय संगत प्रतीत होता है
यह दिए आदेश न्यायालय ने
इस मामले में जांच के दौरान आरोपी को दोषमुक्त घोषित करने के साथ ही मंडार के तत्कालीन थानाधिकारी एवं अनुसंधान अधिकारी भंवरलाल के खिलाफ फौजदारी प्रकरण दर्ज किया जाए, उक्त निर्णय की प्रति तहरीन के साथ पुलिस महानिदेशक जयपुर को भेजी जाए।