चित्तौड़गढ़। जिला सीताफल एक्सीलेंस सेंटर में इन दिनों पौधों के ग्राफ्टिंग का काम चल रहा है। सीताफल के पौधों को ग्राफ्ट कर उन्हें रेडी किया जा रहा है। वैसे तो विभाग को 25000 पौधे तैयार करने के लिए टारगेट दिया गया है, लेकिन किसानों के डिमांड को देखते हुए 31500 पौधे रेडी किए जा रहे हैं। किसानों की ओर से सबसे ज्यादा सुपर गोल्ड, बालानगर और सरस्वती-7 वैरायटीज की डिमांड है। इसके अलावा 12000 पौधे देसी तरीके से रेडी किए जा रहे हैं। बरसात के मौसम में इन पौधों का वितरण भी शुरू कर दिया जाएगा।
सुपर गोल्ड की है सबसे ज्यादा डिमांड
सीताफल एक्सीलेंस सेंटर के डिप्टी डायरेक्टर राजाराम सुखवाल ने बताया कि सीताफल एक्सीलेंस सेंटर में सीताफल के कई वैरायटी के पौधे रेडी किए जा रहे हैं। बसंत ऋतु में ही इनकी ग्राफ्टिंग की जाती है क्योंकि पौधों में रस बनता है। यही समय ग्राफ्टिंग के लिए सही है। विभाग की ओर से इस साल 25000 ग्राफ्टेड पौधा और 12 बीजू पौधे रेडी करने का टारगेट दिया गया है। लेकिन किसानों की मांग को देखते हुए 31500 ग्राफ्टेड पौधा रेडी किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा सहित मेवाड़ अंचल से सबसे ज्यादा डिमांड NMK-1 सुपर गोल्ड की आ रही है। इसके लगभग 20000 पौधे रेडी किए जा रहे हैं। सुपर गोल्ड में 500 ग्राम से ज्यादा का पल्प होता है और यह पीले रंग का होता है। प्रति पौधा फल भी ज्यादा देता है इसीलिए किसानों का रुझान भी सुपर गोल्ड की तरफ ज्यादा है। इसके अलावा चित्तौड़गढ़ की सबसे पुरानी वैरायटी बालानगर के लिए भी किसान डिमांड कर रहे हैं। इसीलिए इस वैरायटी के 5000 पौधे रेडी किए जा रहे हैं। सरस्वती 7 वैरायटी के भी 5000 पौधे रेडी हो रहे हैं। बाकी अन्य वैरायटी के 1000 से 2000 पौधे मांग के हिसाब से रेडी किए जा रहे हैं।
ग्राफ्टेड पौधों और बीजू पौधों में अंतर
उपनिदेशक राजाराम सुखवाल ने बताया कि ग्राफ्टेड और देसी (बीजू) पौधों में काफी फर्क है। ग्राफ्टेड पौधों में फल तीसरे साल में ही लग जाता है जबकि बीजू पौधों में फल 4 साल बाद आता है। ग्राफ्टेड पौधों में आने वाले फलों की साइज भी बड़ी होती है और पल्प भी ज्यादा मिलता है। उनकी देखभाल भी कम लगती है। इस कारण से किसान अब ग्राफ्टेड पौधों की ज्यादा डिमांड करने लगे हैं। अभी पौधे रेडी किए जा रहे हैं तो बरसात के समय इनका वितरण शुरू कर दिया जाएगा।
सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं
उन्होंने बताया कि सीताफल के पौधों में सिंचाई की कम जरूरत पड़ती है। पहले और दूसरे साल में अच्छी सिंचाई करने के बाद तीसरे साल से सिंचाई न भी करो तब भी चल जाता है। उद्यान लगाने वाले किसान पतझड़ में सिंचाई बंद कर देते हैं। बरसात में नई फ़ुटान आती है। इसके बाद सर्दी में जब फल लगते हैं तब अगर पानी की कमी आती है तो सिंचाई की जा सकती है। इन पौधों की पहाड़ी इलाकों में काश्तकारी कर रहे किसान ज्यादा मांग कर रहे हैं। चित्तौड़गढ़ के कनेरा, बेगूं, राशमी, भदेसर के पथरीली इलाकों के किसान ज्यादा डिमांड कर रहे हैं। इसके अलावा प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, उदयपुर से भी मांग आई है। कंकरीली और पथरीली जगहों पर जहां अन्य फलदार पौधे नहीं लगते हैं वहां सिर्फ सीताफल के पौधे लग सकते हैं। उन्होंने कहा की खुशी की बात है कि पिछले कुछ सालों में उद्यान के प्रति किसान सजग हुए हैं।