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November 22, 2024 3:05 pm


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छत्तीसगढ़ में पत्नी ने पति की चिता को दी मुखाग्नि : अंतिम-संस्कार के लिए भाई ने मांगे 1 लाख, तो मजबूर महिला ने किया क्रिया कर्म

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Pankaj Garg

सच्ची निष्पक्ष सटीक व निडर खबरों के लिए हमेशा प्रयासरत नमस्ते राजस्थान

छत्तीसगढ़। कोरिया के कोरिया जिले में सोमवार को कैंसर से पति की मौत हो गई। समाज की मौजूदगी में घर से अर्थी निकाली गई, जिसे पत्नी कंधा दिया और मुक्तिधाम में रीति-रिवाज से चिता को मुखाग्नि दी। इस दौरान यह दृश्य देखकर लोगों की आंखें नम हो गई। घटना पटना तहसील के करजी गांव का है। बताया जा रहा है कि पति की मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए भाई ने 1 लाख रुपए या फिर जमीन की मांग की। शर्तें पूरी नहीं करने पर अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद मजबूर पत्नी ने अंतिम संस्कार की रस्में पूरी की।

मुंह के कैंसर से जूझ रहे थे कतवारी लाल

दरअसल, कतवारी लाल राजवाड़े (47) पिछले 2 साल से मुंह के कैंसर से जूझ रहे थे। करीब 6 महीने पहले हालत ज्यादा खराब हो गई। इसके बाद पैतृक संपत्ति का कुछ हिस्सा बेचकर उसकी पत्नी श्यामपति ने इलाज कराया, लेकिन कतवारी लाल नहीं बच सके।

एक भी संतान नहीं थे

कतवारी लाल राजवाड़े और श्यामपति की 25 साल पहले शादी हुई थी, लेकिन उनका कोई बच्चा नहीं हुआ। इसलिए कतवारी की मौत के बाद अंतिम संस्कार की समस्या गई कि, मुखाग्नि कौन देगा। हिंदू रीति-रिवाज के साथ क्रिया कर्म कौन करेगा।

अंतिम संस्कार के लिए चचेरे भाई ने मांगे पैसे या जमीन

राजवाड़े समाज के लोगों ने कतवारी के बड़े पिता के बेटे संतलाल राजवाड़े को मुखाग्नि देने और क्रिया कर्म करने के लिए कहा, लेकिन संतलाल ने अंतिम संस्कार के बदले एक लाख रुपए या 5 डिसमिल जमीन देने की मांग की। श्यामपति 15 हजार रुपए देने को तैयार थी, लेकिन वह नहीं माना।

खुद अंतिम संस्कार करने का लिया फैसला

इस दौरान श्यामपति ने कहा कि, उसके पास जीवन यापन के लिए मात्र 15 से 20 डिसमिल जमीन बची है। पांच डिसमिल जमीन देने के बाद उसके पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचेगा। फिर भी मृतक का चचेरा भाई मानने को तैयार नहीं था, जिसके बाद श्यामपति ने खुद अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया।

इलाके में इस तरह का पहला मामला

ग्राम पंचायत करजी के पूर्व उप सरपंच चैतमणी दास वैष्णव ने कहा कि पटना क्षेत्र में यह पहली बार देखने को मिला है, जहां पत्नी अपने पति की चिता को मुखाग्नि दी है। हिंदू समाज में परंपरा है कि महिलाएं अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होती हैं, लेकिन श्यामपति का यह निर्णय दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा भी है।

Author: JITESH PRAJAPAT

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