कोटा। प्रदेशभर में मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। कोटा में प्राचीन समय से एक मान्यता चलती आ रही है। कोटा के आवली रोजड़ी इलाके में बंगाली समाज के लोग इस दिन मगरमच्छ की पूजा करते हैं। कई वर्षों से ही बंगाली समाज के लोग मकर संक्रांति के दिन मगरमच्छ की पूजा करते आ रहे हैं।
मिट्टी का मगरमच्छ बनाते हैं
आज के दिन की बंगाली समाज की खास मान्यता होती है। ऐसी एक मान्यता बंगाली समाज में भी कुछ लोगों द्वारा मानी जाती है और उस मान्यता के चलते बंगाली समाज के लोग मिट्टी से मगरमच्छ की आकृति बनाकर उसकी पूजा करते हैं। कोटा में भी बंगाली समाज के लोगों ने नयागांव रोजड़ी के पास एक मिट्टी से बना मगरमच्छ की विशाल आकृति बना कर उसकी पूजा करते है। इस अवसर पर बंगाली समाज के महिलाएं पुरुष मौजूद रहते है।
पुजारी ने बताई मान्यता
बंगाली समाज के पुजारी ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन मगरमच्छ के स्वरूप की पूजा की जाती है। बंगाली समाज के पुजारी ने बताया कि यह परंपरा काफी वर्षों से चली आ रही है। एक तांत्रिक के द्वारा मां कामाख्या में तंत्र विद्या सीख कर अपने गांव पर आता है। अपने पत्नी को अपनी तंत्र विद्या दिखता है। पत्नी को बताता है कि वो तंत्र विद्या में काफी माहिर है। वह अपनी पत्नी को एक नदी के पास लेकर आता है। और उसे बताता है कि मैं मगरमच्छ का रूप धारण कर सकता हूं। लेकिन उसकी पत्नी उसका विश्वास नही करती है। वो व्यक्ति अपनी पत्नी को नदी के पास ले कर आता है।
पत्नी के हाथ से छूटा था लोटा
पुजारी ने बताया कि पति बोलता है कि मैं अभी मगरमच्छ का रूप धारण करूंगा और एक लोटे में जल को अभिमंत्रित कर उसकी पत्नी को दे देता है और कहता है कि जब मैं मगरमच्छ वाले रूप में आ जाऊं तो यह जल मुझ पर छिड़क देना। जिससे मैं मनुष्य रूप में वापस आ जाऊंगा जैसे ही उसका पति मगरमच्छ के रूप में जाता है उसकी पत्नी मगरमच्छ का रूप देख घबरा जाती है और उसे दिया हुआ अभिमंत्रित जल का लोटा उसके हाथ से छूट जाता है। और उसका पति इंसान के रूप में नहीं आ पाता।
मंगल गीत गातीं हैं महिलाएं
पुजारी ने बताया कि वहां मौजूद नदी या तालाब में वापस मगरमच्छ चला जाता है। इसके बाद से बंगाली समाज के लोग नदी या फिर तालाब के पास में एकत्रित होकर मिट्टी का मगरमच्छ बनाकर विधिवत रूप से पूजा करते हैं। पूजा के बाद प्रसादी वितरण भी करते हैं। बंगाली समाज के लोगों का मानना है कि धरती पर केवल मगरमच्छ ही एक ऐसा जीव है जो जल और थल पर रह सकता है। बंगाली समाज के लोग मंगल गीत गाते है। और उसके बाद मिठाई और मौसमी फलों का भोग लगाते है। साथ ही समाज और देश की खुशहाली की कामना करते है।