वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत की अस्वरूढ़ मूर्ति का लोकार्पण जोधपुर। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लंबे समय बाद फिर एक बार रविवार को अपने गृह नगर जोधपुर के दौरे पर रहे इस दौरान इस दौरान उन्होंने ऐतिहासिक मंडोर उद्यान में वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत की अस्वरूढ़ मूर्ति का लोकार्पण भी किया. सैनिक क्षत्रीय माली संस्कृत संवर्धन एवं इतिहास शोध संस्थान के द्वारा आयोजित किए गए इस कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे वहीं विशिष्ट अतिथि के तौर पर राज्यसभा सांसद और भाजपा नेता राजेंद्र गहलोत भी कार्यक्रम में मौजूद रहे समाज के इस कार्यक्रम में दोनों ही राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता एक ही मंच पर बैठे भी नजर आए आपको बता दे की वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत का 650 वर्ष पूर्व का इतिहास रहा है जिन्होंने तुर्को से मंडोर को आजाद करवाया था. राजशाही शासन के दौर में मंडोर मारवाड़ की राजधानी भी हुआ करता था और वर्तमान में जोधपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में भी इस उद्यान का नाम आता है जहां लंबे समय से इस ऐतिहासिक उद्यान में वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत की मूर्ति स्थापित करने की मांग भी उठ रही थी वहीं अब पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुख्य आतिथ्य इस ऐतिहासिक मंडोर उद्यान में वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत की मूर्ति का रविवार को विधिवत तौर पर लोकार्पण भी संपन्न हुआ पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि वीर शिरोमणि की मूर्ति स्थापित करना कोई मामूली कार्य नहीं है वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत के बारे में कई लोगों को जानकारी भी नहीं थी और जिस प्रकार से इस संस्थान के द्वारा करीब 650 वर्ष पूर्व के इस इतिहास का रिसर्च करके जिस प्रकार से वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत ने अपने शौर्य और वीरता का परिचय दिया था व इतिहास में भी दर्ज है. और निश्चित तौर पर यह ऐतिहासिक कार्य हुआ और जोधपुर के मंडोर उद्यान में कहीं देसी और विदेशी पर्यटक भी आते हैं तो निश्चित रूप से मंडोर उद्यान में एक और उपलब्धि आज जुड़ गई है. ओर यह पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र रहेगा।
वहीं राज्यसभा सांसद और भाजपा नेता राजेंद्र गहलोत ने कहा कि वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत का 650 से अधिक वर्ष पुराना इतिहास है और आज जो आप इस ऐतिहासिक मंडल उद्यान में प्राचीन इमारतें और विकास है उनमें उनका बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है उसके साथी जो मनोर ध्यान में अति प्राचीन भैरू नाथ बाबा का मंदिर है उसकी स्थापना अभी वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत के द्वारा ही की गई थी और किसानों के लिए भी उन्होंने कहीं कार्य किए थे जहां उनकी याद में हर वर्ष होली के अगले दिन राव की गैर निकालने की परंपरा है और राव हेमा गहलोत को भोमिया जी के रूप में यहां आज भी पूजते है. और इसीलिए हमने सोचा कि जो इतिहास में खोए हुए शूरवीर हैं जो इतिहास में गुमराह हो गए हैं और जिनका इतिहासकारों ने वर्णन नहीं किया है और इस समाज ने जिसे मंडोर को विजय किया जो मारवाड़ की राजधानी हुआ करती थी और उनकी मूर्ति यहां लगनी चाहिए थी जो आज साकार हुई है।
यह है वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत का इतिहास
वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत का जन्म 14वीं शताब्दी के मध्य कुचेरा (नागौर) में माता गंवरी सोलंकी पिता राव पदमजी गहलोत के यहाँ हुआ. इनका विवाह पार्वती देवड़ा पुत्री रामोजी देवडा के संग हुआ. इनके तीन पुत्र केलो, पोपो एवं थीरपाल हुए. वे बाल्यकाल से ही साहसी, वीर और स्वाभिमानी थे. युवावस्था में उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना घटित हुई. घटनानुसार एक दिन अपने खेत में कृषि कार्य कर रही माता गंवरी के पास शिकारियों द्वारा घायल खरगोश आया. शिकारियों ने घायल खरगोश की मांग की परंतु गंवरी नें शरण में आये घायल जीव की रक्षा करना अपना धर्म मानते हुए देने से इंकार कर दिया. जिसके कारण हुए आपसी झगड़े की सूचना हेमा गहलोत को मिली.हेमा गहलोत नें तुरंत अपनी माता के साथ हुए अभद्र व्यवहार तथा आन-बान-शान की रक्षार्थ अकेले ही शिकारियों से मुकाबला कर उन्हें मार भगाया. वीर हेमा गहलोत के पराक्रम, साहस और वीरता के चर्चे सुन बालेसर ग्राम के ईन्दा परिहारों के मुखिया उगमसी नें अपना प्रधान नियुक्त कर मण्डोर बुलाया. प्रधान राव हेमा ने कुचेरा से इष्ट देव काला-गोरा भैरव एवं कुलदेवी बाण माता की मूर्तियाँ मण्डोर में विक्रम संवत् 1446 चैत्र, कृष्ण पक्ष प्रतिपदा, सोमवार (12 मार्च, 1389) होली पर्व के दिन प्रतिष्ठित कर मण्डोर को अपना निवास स्थान बनाया तथा कृषि कार्य हेतु कुएँ का निर्माण करवाया, जिसे वर्तमान में भैरव बावड़ी कहा जाता है.
विक्रम संवत् 1349 (1292 ई.) से मण्डोर इस्लामिक सत्ता के अधीन था. राव हेमा गहलोत के मण्डोर आगमन के समय मण्डोर गुजरात के तुर्क मुजफ्फर शाह (ज़फर खां) के अधीन था. उस समय मण्डोर दुर्ग पर हाकिम (प्रशासक) ऐबक खां नियुक्त था. हाकिम ऐबक खां ने मण्डोर के कृषकों पर अतिरिक्त लगान वसूलने का आदेश दिया, जिसे कृषकों ने देने से इनकार कर दिया था.ईन्दा परिहारों की शाखा के मुखिया उगमसी, राव चूंडा राठौड़ एवं प्रधान हेमा गहलोत ने मण्डोर पर तुर्को के शासन को समाप्त करने हेतु योजना बनाई. योजनानुसार प्रत्येक ग्रामों से जंगी जवानों (ईन्दा, राठौड़ एवं क्षत्रिय माली) को बुलाया। सौ बैलगाड़ियों में चार-चार जवानों को हथियार सहित घास के बोरों में छिपा दिया और बैलगाड़ी हाकने वाले जवान को भी घास से ढके हथियार के साथ इन गाड़ियों को मण्डोर के किले में ले गये फिर अचानक इन योद्धाओं ने “आओ लड़णों फतह कर दो” के उद्घोष के साथ आक्रमण कर ऐबक खां एवं अन्य तुर्क सैनिकों का वध कर मण्डोर को विदेशी आक्रांताओं से विक्रम संवत् 1449 (1392 ई.) में स्वतंत्र करवाया. प्रधान राव हेमा गहलोत की सलाह पर ईन्दा परिहारों के मुखिया उगमसी ने अपने पुत्र राव धवल की कन्या का विवाह राव चूंडा राठौड़ के साथ कर मण्डोर को दहेज में दे दिया.राव हेमा गहलोत एवं राव चूंडा राठौड़ के बीच आपसी इकरार विक्रम संवत् 1449 पौष, कृष्ण पक्ष दशमी, बुधवार (08 दिसम्बर, 1392) के दिन थाना सालोड़ी ग्राम में हुआ, जिसमें राव चूंडा ने राव हेमा गहलोत को पूरे मण्डोर की लगान माफी सहित कृषि भूमि दी. राव हेमा गहलोत ने राव चूंडा का राज तिलक किया, जो भाटों (राव) की हस्तलिखित बहियों में दर्ज है-
“पदम के पुत्र हेमा ने मण्डोर पर शासित तुर्कों के शासन पर विजय पाकर हिन्दू शासन की स्थापना की तथा राव चूंडा का राज तिलक किया एवं घोड़ें सहित अन्य वस्तुओं का दान भाटो को दिया ”
क्षत्रिय माली योद्धाओं के वंशजों नें इस विजय को चिर स्थायी बनाने हेतु गैर महोत्सव-यात्रा की शुरुआत चैत्र, कृष्ण पक्ष प्रतिपदा होली पर्व के दिन की. इसकी स्मृति में आज भी प्रतिवर्ष होली पर्व के शुभ अवसर पर मण्डोर में उनके वंशजों द्वारा “राव जी की गैर” गहलोत युवा को राव बनाकर निकाली जाती है. राव हेमा गहलोत की मृत्यु राव चूंडा के शासन काल में ही हुई थी. इनका दाह संस्कार मण्डोर में स्थित इष्ट देव काला-गोरा भैरव एवं कुलदेवी बाण माता मन्दिर के सामने स्थित स्थान (थान) पर किया गया, जहां आज भी वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत भोमियाजी के थान के रुप में अवस्थित है. मण्डोर में दिखाए जाने वाले थ्री-डी-लाईट एवं साउंड शो में इस वीरगाथा को विस्तृत रूप में दिखाया जा रहा है.
Author: AKSHAY OJHA
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