डूंगरपुर। जिले के एक होटल में इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की ओर से मंगलवार को बाल रोग विशेषज्ञों की ग्रिड कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला की मुख्य वक्ता इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की अध्यक्ष डॉ. नीलम मोहन रही। कार्यशाला में नवजात बच्चों में होने वाली बीमारियों और स्वास्थ्य को लेकर चर्चा की गई।
शहर के एक होटल में आयोजित कार्यशाला में इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की अध्यक्ष डॉ. नीलिमा मोहन, बेंगलुरु से डॉ. बी. नंदीश, जयपुर से डॉ. मोहित, अहमदाबाद से डॉ. आशय सहित डूंगरपुर, बांसवाड़ा ओर उदयपुर जिलों से शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर्स ने भाग लिया। कार्यशाला में नवजात बच्चों में आंत से जुड़ी बीमारियों के साथ पीलिया से होने वाली मौतों पर लगाम लगाने सहित बच्चों से जुड़ी बीमारियों और उनके समाधान को लेकर डॉक्टर्स के साथ चर्चा की गई।
इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की अध्यक्ष डॉ. नीलिमा मोहन ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में अज्ञानता की वजह से नवजात बच्चे कुपोषण सहित कई प्रकार की बीमारी का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में उन परिस्थितियों में शिशु रोग विशेषज्ञों की भूमिका अति महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने शिशु रोग विशेषज्ञों से प्रसूताओं और उनके परिजनों को नवजात बच्चों को बीमारियों सहित कुपोषण से कैसे दूर रखा जा सकता है। इसको लेकर प्रॉपर गाइड करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि अधिकतर कुपोषण इसलिए नहीं होता है कि हमारे पास खिलाने का पैसा नहीं है। बल्कि हमारे आपस ज्ञान की कमी की वजह से बच्चे को प्रोपर डाइट नहीं मिल पाती है। बच्चे के जन्म के बाद 6 महीने तक उसे मां के दूध देना चाहिए। ये उसके ग्रोथ ओर स्वस्थ रखने के लिए बहुत जरूरी है। जबकि इसके बाद भी 2 साल तक फीडिंग जरूरी है। इससे बच्चों में कई तरह की बीमारियां दूर होती है। कार्यशाला में डॉ. निलेश गोठी, डॉ. गौरव यादव, डॉ. पंकज दोषी, डॉ. कल्पेश जैन ने भी भाग लिया।