भरतपुर/बाड़मेर। फसलों के वास्तविक उत्पादन के आंकड़े जुटाने और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत कृषि विभाग वर्ष में दो बार फसल कटाई प्रयोग करवाता है। जिस किसान के खेत में यह प्रयोग करवाया जाता है, उसे अनुग्रह राशि के रूप में 75 रुपए का प्रावधान है। इसके लिए भी तहसील स्तर पर जाकर आवेदन करना होता है। इतनी छोटी रकम के लिए किसान कागजी खानापूर्ति से बचना चाहता है और आवेदन ही नहीं करता। ऐसे में किसानों के लिए आवंटित राशि लेप्स ही हो रही है। इस राशि को बढ़ाने का आग्रह किया है। इस राशि का भुगतान राजस्व विभाग करता है। जबकि फसल कटाई प्रयोग कृषि विभाग करवाता है। प्रावधान के तहत प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में अधिसूचित फसलों का खरीफ और रबी में फसल कटाई प्रयोग से फसलों के उत्पादन का पता लगाया जाता है। साथ ही अगर कभी अकाल और खराबा हो जाए तो इसी आधार पर बीमा क्लेम का भुगतान किया जाता है। यह योजना किसानों के फायदे के लिए शुरू की गई है। प्रयोग के दौरान यदि औसत पैदावार कम निकली तो गांव के बीमा करवाने वाले सभी किसानों को उसके क्लेम की राशि दी जाती है। इसलिए प्रयोग के दौरान किसानों का सहयोग अपेक्षित है। उप निदेशक महेंद्रकुमार ने बताया कि पेमेंट बढ़ाने के बारे में केंद्र सरकार से पत्र आया है। इसे संबंधित विभागों को प्रेषित कर दिया गया है।
तहसील व पटवार मंडल स्तर पर होता है कटाई प्रयोग
खरीफ व रबी की फसल पकने के दौरान यह प्रयोग किया जाता है। इसका तहसील व पटवार लेवल पर फार्मूला तय है। पटवारी व कृषि विभाग के कर्मचारी तहसील स्तर पर एक फसल के 20 प्रयोग करते हैं और पटवार मंडल स्तर पर एक फसल के चार–चार प्रयोग किए जाते हैं। इसमें पांच गुणा पांच मीटर का एरिया तय किया जाता है। किसान के खेत की फसल निकालकर उसे ही वापस दी जाती है।
पटवारी को 500 रुपए ऑफलाइन पर 100 रुपए
इस प्रयोग के लिए पटवारी को एक किसान के खेत में तीन बार जाना पड़ता है। इसके लिए उसे 500 रुपए देने का प्रावधान है। वह भी तब जब वह एप आधारित ऑनलाइन फसल कटाई प्रयोग करे। हालांकि अब एप पर अपडेट करना अनिवार्य कर दिया गया है। अगर ऑफलाइन करे तो उसे 100 रुपए ही मिलेंगे। ऐसे में सभी पटवारी ऑनलाइन ही काम कर रहे हैं। इसके लिए पहले उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाता है। गांवों में उपलब्ध फसलों का ब्यौरा एकत्र करना पड़ता है। इसमें खंड कृषि अधिकारी, कृषि विकास अधिकारी, तकनीकी सहायक, कृषि निरीक्षक, खंड तकनीकी प्रबंधकों की मदद ली जाती है। इसके बाद राजस्व अधिकारी, तहसीलदार, पटवारी आदि खेत का चयन करते हैं।