पाली। जिले के देसूरी में गुरुवार को झोपड़ी में आग लगने से 2 साल की मासूम स्वामी 60 प्रतिशत तक झुलस गई। पाली के बांगड़ हॉस्पिटल में बर्न वार्ड बंद होने से उसे प्राथमिक उपचार के बाद जोधपुर रेफर किया गया लेकिन इस दौरान मासूम का दादा सोमाराम गरासिया नम आंखों से हॉस्पिटल स्टाफ से निवेदन करता दिखा।
बोले कि हादसे के बाद अचानक एम्बुलेंस में बैठ बच्ची को लेकर हॉस्पिटल आ गए। आग में सबकुछ जल गया पास में न मोबाइल है और न ही एक रुपया। जोधपुर में कैसे रहेंगे। बच्ची का यही इलाज कर दो, मेहरबानी होगी। सोमाराम की बात सुन ट्रॉमा वार्ड के नर्सिंग स्टाफ प्रमोद कुमावत आगे आए। इसके बाद स्टाफ के लोगों को सोमाराम के बारे में बताया तो सभी ने कुछ ही मिनट में 3 हजार रुपए शामिल किए और साेमाराम को दिए। इस हादसे में सोमाराम के एक पोते की जिंदा जलने से मौत हो गई थी।
भाई जिंदा जल गया था
दरअसल, पाली जिले के देसूरी के वीरमपुरा के निकट एक खेत में झोपड़ी बनाकर सोमाराम गरासिया अपनी पत्नी लीला, 6 पोता-पोतियों और खुद के 2 बच्चों सहित रहता है। गुरुवार शाम करीब छह बजे वह अपनी पत्नी के साथ पास के खेत में काम कर रहा था। बच्चे झोपड़ी में अकेले थे। छह बच्चे खेल रहे थे और 4 साल का कालूराम और उसकी 2 साल की स्वामी अंदर सो रहे थे। इस दौरान घास और लकड़ियों से बनी झोपड़ी में अचानक आग लग गई। इस हादसे में सोमाराम गरासिया का 4 साल का पोता कालूराम जिंदा जल गया और 2 साल की पोती स्वामी 60 प्रतिशत तक जल गई। उसकी पीठ का पुरा हिस्सा जल गया। आग लगने देख ग्रामीण और सोमाराम भी दौड़ कर मौके पर पहुंचे। आग बुझाने के प्रयास में सोमाराम गरासिया के हाथ भी झुलस।
तुरंत जोधपुर के लिए हुआ रवाना
हादसे के बाद मौके पर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी पहुंचे। गंभीर घायल दो साल की मासूम स्वामी को एम्बुलेंस से पाली रेफर किया गया। अचानक हुए इस हादसे में घबराया सोमाराम तुरंत ऐम्बुलेंस में बैठकर अपने एक रिश्तेदार के साथ बच्ची को लेकर गुरुवार शाम को पाली पहुंचे। यहां से प्राथमिक उपचार के बाद 2 साल की स्वामी को जोधपुर रेफर किया गया।
आग में सबकुछ जल गया
42 वर्षीय सोमाराम गरासिया ने बताया कि मूल रूप से उदयपुर जिले के सायरा थाना क्षेत्र का रहने वाला है और यहां देसूरी में खेत में मजदूरी करता है। करीब 6 महीने पहले उसके बेटे रमेश की मौत हो गई। एक महीने बाद ही उसकी पत्नी 6 बच्चों को छोड़कर चली गई और दूसरी शादी रचा ली। तब से वह अपने दो बच्चों सहित छह पोते-पोतियों को पाल रहा है। मजदूरी करने जाना पड़ता है। ऐसे में 11 साल की पोती के भरोसे सभी बच्चों को झोपड़ी में छोड़कर काम पर दोनों पति-पत्नी जाते है। उसने बताया कि आग लगने से झोपड़ी में रखे कुछ रुपए, गहने सहित सारा सामान उसका जल गया। जेब में 10 रुपए तक नहीं बचे।
इससे पहले भी कई बार हॉस्पिटल स्टाफ ने बढ़ाए मदद के हाथ
बता दे कि बांगड़ हॉस्पिटल के ट्रामा वार्ड के नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टर्स ने कोई पहली बार किसी ज़रुरतमंद मरीज के परिजनों की हेल्प नहीं की। इससे पहले भी कई बार ऐसे मौके आए है। जब मरीज को रेफर करने के दौरान ग्रामीण क्षेत्र से आए कई लोग आर्थिक स्थिति खराब होने का हवाला देते हुए जोधपुर रेफर नहीं करने की बात कही और इन्होंने यथा संभव आर्थिक रूप से उनकी मदद सकी। मदद करने वाले में दो मीडियाकर्मी भी शामिल रहे।
कबाड़ी का काम करने वाले ने भी की मदद
सोमाराम गरासिया के लिए जब ट्रोमा वार्ड में कार्यरत नर्सिंग स्टाफ रुपए एकत्रित कर रहा था। इस दौरान वहां आए निर्मल वागोरिया को यह बात पता चली तो उसने भी अपने जेब से एक हजार रुपए निकालकर तुरंत सोमाराम गरासिया को दिए। साथ ही मोबाइल नंबर कागज पर लिखकर दिया और बोला कि जोधपुर में रुपए कम पड़ जाए तो इस नंबर पर फोन कर देना मदद पहुंचा देंगे।