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December 2, 2024 12:12 pm


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‘कुंभ में ऐसा करेंगे,नक्शे से पाकिस्तान का निशान मिट जाएगा’ : रामभद्राचार्य बोले- राष्ट्र की चिंता संत करता,परिवार वाला भक्त नहीं; देश गांधी परिवार का नहीं

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Pankaj Garg

सच्ची निष्पक्ष सटीक व निडर खबरों के लिए हमेशा प्रयासरत नमस्ते राजस्थान

जयपुर। जिले में चल रही रामकथा में जगदगुरु रामभद्राचार्य ने कहा- देश की चिंता संत कर सकता है। परिवार वाला भक्त नहीं। इस बार कुंभ में हम कुछ ऐसा करेंगे कि विश्व के नक्शे से पाकिस्तान का नामो-निशान मिट जाएगा। सोमवार को विद्याधर नगर स्टेडियम में रामभद्राचार्य ने ताड़का वध और राम विवाह की लीला का प्रसंग सुनाया। कथा में संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल भी पहुंचे। ​​​​​​​रामभद्राचार्य ने कहा- मेरे से कुछ भूल हो जाती है। वो बाद में हानिकारक हो जाती है। मैं कठोर कहने में बदनाम हूं। फिर भी मैं कहूंगा। किसी भी संत को निराश होने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा- जब रामलला को ला सकते हैं तो मथुरा-काशी के ज्ञानवापी को भी लाकर दिखाएंगे। रेवासा पीठ की दुर्दशा नहीं होने देंगे। रेवासा में जो हुआ वो परंपरा के विरूद्ध है। रामभद्राचार्य बोले- यह देश गांधी परिवार का नहीं है। यह राष्ट्र हमारा है। सनातनियों का है। विधर्मियों का नहीं है। जिनके चरणों में बैठकर राष्ट्रीय समस्या का अंत हो जाता है, वो संत है।

भारत में गौ हत्या बंद करवा कर रहेंगे

उन्होंने कहा- चित्रकूट धाम में मैं 6 दिसंबर को संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना करूंगा। सभी को आकर देखना चाहिए, देश की संस्कृति कैसे स्थापित की जाती है। अब सांस्कृतिक आंदोलन होकर रहेगा। भारत में गौ हत्या बंद करवा कर रहेंगे। हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाएंगे। अब हम सत्ता परिवर्तन नहीं चाहते। हमारे प्रधानमंत्री के तौर पर चौथी बार नरेंद्र मोदी ही बने। ऐसी मेरी इच्छा है। उन्होंने कहा- जयपुर से लगाव सा हो गया है। मैं जयपुर 2003 में आया था। इसके बाद 21 सालों तक नहीं आया। इसका मुझे खेद है। अब मैं वचन देता हूं कि हर साल छोटी काशी आऊंगा।

रामभद्राचार्य बोले- श्रीराम ने कहा था संतों को मारने वालों को मारना मेरा धर्म

रामभद्राचार्य ने कहा- भगवान राम जब विश्वामित्र के साथ अयोध्या से वन के लिए गए। इस दौरान उन्होंने ताड़का का वध किया। उससे पहले ताड़का ने श्रीराम के सामने कई महिमा मंडन किए। इस पर श्री राम ने ताड़क से कहा- संतों को मारने वाले को मारना भी मेरा धर्म है। उन्होंने कहा- देवता तो कई हैं, लेकिन राम जैसा कोई नहीं। राम जैसा कोई राजा, त्यागी, स्वामी, दानी नहीं है। इसके अलावा रामभद्राचार्य ने अपने प्रसिद्ध भजन ‘राजे भी देखे महाराजे भी देखे मेरे राम जैसा कोई राजा न देखा’ सुनाया।

जानिए, कौन हैं रामभद्राचार्य

रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं। उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है। वे प्रवचनकार, दार्शनिक और हिंदू धर्मगुरु हैं। वे रामानंद संप्रदाय के मौजूदा चार जगद्गुरुओं में से एक हैं और इस पद पर 1988 से आसीन हैं। महाराज चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति भी हैं। चित्रकूट में तुलसी पीठ की स्थापना का श्रेय भी इन्हें ही जाता है। इन्होंने दो संस्कृत और दो हिंदी में मिलाकर कुल चार महाकाव्यों की रचना की है। इन्हें भारत में तुलसीदास पर सबसे बेहतरीन विशेषज्ञों में गिना जाता है। साल 2015 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।

इनके वक्तव्य से बदला राम जन्मभूमि का फैसला

गौरतलब है कि पद्मविभूषण रामभद्राचार्य ने सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में वेद-पुराण के उद्धरण देकर गवाही दी थी। जब श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में वे वादी के रूप में शीर्ष कोर्ट में उपस्थित थे। उन्होंने ऋगवेद की जैमिनीय संहिता से उदाहरण देना शुरू किया, जिसमें सरयू नदी के स्थान विशेष से दिशा और दूरी का सटीक ब्योरा देते हुए श्रीराम जन्मभूमि की दूरी बताई गई है। कोर्ट के आदेश से जैमिनीय संहिता मंगाई गई और उसमें जगद्गुरु की ओर से बताए गई पृष्ठ संख्या को खोल कर देखा गया तो समस्त विवरण सही पाए गए। इस प्रकार जगद्गुरु के वक्तव्य ने फैसले का रुख मोड़ दिया। जज ने भी कहा कि आज मैंने सनातनी प्रज्ञा का चमत्कार देखा है। एक व्यक्ति जो भौतिक रूप से आंखों से रहित है वो भारतीय वांग्मय और वेद-पुराणों के उद्धरण दे रहा है जो बिना ईश्वरीय कृपा के संभव नहीं है।

2 महीने की उम्र में चली गई आंखों की रोशनी

सिर्फ दो महीने की उम्र में इनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। आज इन्हें 22 भाषाएं आती हैं और ये 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। न तो ये पढ़ सकते हैं और न लिख सकते हैं और न ही ब्रेल लिपि का प्रयोग करते हैं। केवल सुन कर सीखते हैं और बोल कर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं। पद्मविभूषण रामभद्राचार्य एक ऐसे संन्यासी हैं, जो अपनी दिव्यांगता को हरा कर जगद्गुरु बने हैं।

Author: JITESH PRAJAPAT

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