बांसवाड़ा। जिला, राजस्थान का एक जनजातीय बहुल क्षेत्र है जो पलायन जैसी गंभीर समस्याओं के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र में पलायन का दर्द सबसे अधिक मासूम बालकों को सहना पड़ता है, क्योंकि वे छोटी उम्र में ही परिवार की जिम्मेदारी उठाने को मजबूर हो जाते हैं। उनकी शिक्षा और बाल्यकाल की खुशियां इस बोझ के तले दब जाती हैं। ऐसी कठिन परिस्थिति में कुछ लोग समाज में सुधार और बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आगे आते हैं। इनमें से एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं श्री कमलेश बुनकर, जिन्होंने बालकों के उत्थान और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। कमलेश बुनकर का योगदान उस समय से प्रारंभ हुआ जब संविदा के तहत नियुक्त विद्यार्थी मित्रों को सेवा से हटाया गया। इस घटना ने उन्हें सोचने पर मजबूर किया कि समाज के लिए क्या किया जा सकता है। उन्होंने यह निश्चय किया कि बालकों और बालिकाओं की सेवा में अपना जीवन समर्पित करेंगे। वर्ष 2015 से कमलेश बुनकर ने चाइल्डलाइन 1098 के माध्यम से बच्चों की सहायता का बीड़ा उठाया और आज भी वे इस कार्य में लगे हुए हैं।
बालकों की गिरवी रखने की कुप्रथा पर अंकुश
बांसवाड़ा जिले में बच्चों को गिरवी रखने की कुप्रथा एक गंभीर समस्या थी। गरीब परिवार अपने बच्चों को आर्थिक तंगी के कारण गिरवी रख देते थे। कमलेश बुनकर ने प्रशासन के सहयोग से इस प्रथा को समाप्त करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने इस दिशा में न केवल बच्चों को इस दासता से मुक्त कराया बल्कि इस प्रथा के खिलाफ स्थानीय पुलिस थानों में मुकदमे भी दर्ज कराए। इसके परिणामस्वरूप इस कुप्रथा पर काफी हद तक अंकुश लग पाया।
बालकों को योजनाओं का लाभ दिलाने का प्रयास।
कमलेश बुनकर का मानना है कि सरकारी योजनाएं तो बहुत हैं, परंतु जरूरतमंदों तक उनका लाभ पहुंचाना हम सभी का दायित्व है। इस उद्देश्य से उन्होंने गांव-गांव और ढाणी-ढाणी जाकर जरूरतमंदों की सहायता की। उन्होंने दिव्यांगजन, वृद्ध, शिक्षा से वंचित बच्चों को आवश्यक योजनाओं से जोड़ने का कार्य किया ताकि वे अपने अधिकारों का लाभ उठा सकें। उनके प्रयासों से कई बालक-बालिकाएं मूलभूत सुविधाओं से जुड़ पाए और अपने जीवन को खुशहाल बनाने की दिशा में अग्रसर हुए।
सड़क किनारे रहने वाले बालकों की शिक्षा में योगदान
बुनकर ने सड़क किनारे रहने वाले परिवारों की समस्याओं का गहन अध्ययन किया और सबसे पहले उनके बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का संकल्प लिया। ऐसे परिवार अक्सर एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करते रहते हैं, जिससे उनके पास पहचान पत्र जैसे आवश्यक दस्तावेज नहीं होते। कमलेश बुनकर ने इन बच्चों के लिए आधार कार्ड बनवाने में मदद की, जिससे उन्हें विद्यालयों में प्रवेश मिल सके। परिणामस्वरूप, इन बालकों ने कक्षा एक से पांचवी तक की पढ़ाई पूरी की और अब वे नियमित रूप से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
बाल श्रम के खिलाफ कड़ा कदम
बांसवाड़ा जिले में बाल श्रम एक गंभीर समस्या है। गरीब परिवारों के बच्चे शिक्षा से वंचित होकर काम में लग जाते हैं। कमलेश बुनकर ने बाल श्रमिकों को न्याय दिलाने और पुनर्वास के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने बिना किसी भय के बाल श्रमिकों के लिए स्वयं मुकदमे दर्ज कराए और प्रशासन के सहयोग से उनका पुनर्वास कराया। इसके अलावा, इन बच्चों को नियमित रूप से शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया गया और उनकी शिक्षा की स्थिति का फॉलो-अप भी किया गया।
बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास
कमलेश बुनकर ने बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने का भी कार्य किया। उन्होंने अपने प्रयासों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया कि बच्चों को शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य और अन्य आवश्यकताओं की जानकारी मिल सके। उनका मानना है कि जब प्रत्येक बालक और बालिका अपने अधिकारों से परिचित होंगे तो वे अपने जीवन में आत्मनिर्भर बन पाएंगे।
बालकों के सर्वांगीण विकास में सहयोग
कमलेश बुनकर ने न केवल बालकों की शिक्षा और उनके अधिकारों के प्रति कार्य किया, बल्कि उनके सर्वांगीण विकास में भी अपना योगदान दिया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि बच्चों को उचित पोषण, स्वास्थ्य सेवाएं, और मानसिक समर्थन मिल सके। इस उद्देश्य से उन्होंने विभिन्न शिविरों का आयोजन किया जिसमें बच्चों को मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कई गतिविधियां करवाई गईं।
बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव
कमलेश बुनकर के इन प्रयासों के परिणामस्वरूप बांसवाड़ा जिले में कई बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं। कई बालक-बालिकाएं, जो शिक्षा से वंचित थे, अब नियमित रूप से विद्यालय जा रहे हैं और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। गिरवी रखने की कुप्रथा से मुक्ति पाने वाले बच्चों ने शिक्षा को अपना लिया है और बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। कमलेश बुनकर जैसे व्यक्ति समाज में प्रेरणा के स्त्रोत हैं। उनके प्रयासों ने न केवल बालकों की जिंदगी बदली है बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया है कि अगर समाज के हर व्यक्ति का योगदान हो तो कोई भी कुप्रथा समाप्त हो सकती है और बच्चों को उनका अधिकार मिल सकता है। कमलेश बुनकर का यह कार्य बच्चों के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान है, जो न केवल उनके शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करता है, बल्कि उनके उज्ज्वल भविष्य का मार्ग भी प्रशस्त करता है। उनके इस कार्य के प्रति समर्पण और योगदान को देखते हुए कहा जा सकता है कि यदि समाज में और लोग भी इसी तरह से बच्चों के अधिकारों के लिए कार्य करें तो समाज का चेहरा निश्चित रूप से बदल सकता है।