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January 23, 2025 9:47 am


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सर्दियों में गर्म रहता है सूत से बना खेस : जालोर के लेटा गांव में आज भी चलता है चरखा; MLA ने प्रधानमंत्री को किया था गिफ्ट

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Pankaj Garg

सच्ची निष्पक्ष सटीक व निडर खबरों के लिए हमेशा प्रयासरत नमस्ते राजस्थान

जालोर। जिले का खेस देशभर में प्रसिद्ध है। खेस पतले कंबल की तरह का कपड़ा होता है जो चरखे पर काते सूत या पाली मिल के मोटे धागे से बनता है। इस कपड़े की खासियत है कि यह सर्दियों में गर्म रहता है। इससे बने नेहरू जैकेट नेताओं को खास पसंद आते हैं। जालोर में अभी भी कुछ परिवार हाथ से चरखा चलाकर सूत तैयार करते हैं।

ऐसा ही एक गांव है जालोर के लेटा गांव । जालोर शहर से यह गांव 12 किमी दूर है। आज से 50 साल पहले यहां हर घर में चरखा चलता था। घर-घर में सूत तैयार किया जाता था। उससे हथकरघा की 200 इकाइयां चल रही थीं, जिन पर खेस तैयार किया जाता था।

वक्त के साथ चरखा और हथकरघा का स्थान तैयार कपड़े और वस्त्र मिलों ने ले लिया। लेटा गांव में आज भी दो परिवार ऐसे हैं जो चरखा चलाते हैं और हथकरघा पर खेस तैयार करते हैं।

हमारा नाम पूछते हुए कपड़ा खरीदने आते हैं

लेटा गांव में हमने खेस के कारीगर मिश्रीमल के घर का पता पूछा। गांव की गलियों से होते हुए हम एक घर के सामने पहुंचे। बड़े गेट से अंदर जाने के बाद खुले चौक में एक महिला चरखा चलाते नजर आई। यह हथकरघा कारीगर की बहू थी। यहां चरखे पर सूत तैयार किया जा रहा था।

पास ही एक कमरे से हथकरघा की लकड़ी से निर्मित मशीन की आवाज आ रही थी। हमें वहां कारीगर मिश्रीलाल हाथ से कपड़ा तैयार करते मिले। दोनों पैरों और दोनों हाथों से मशीन से बंधी कुछ डोरियां खींचते हुए वे लगाकर काम कर रहे थे और धागों को सेट कर खेस तैयार कर रहे थे।

मिश्रीमल ने बताया- कई पीढ़ियों से यह काम चल रहा है। यहां का खेस राजस्थान में ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी प्रसिद्ध है। कई लोग किसी काम से जालोर आते हैं तो लेटा गांव से खेस खरीदकर ले जाना नहीं भूलते। हमारा नाम पूछते हुए लोग कपड़ा खरीदने आते हैं।

100 प्रतिशत शुद्ध कपास से होता है तैयार

मिश्रीमल ने बताया- यह जालोर का विशेष हस्तशिल्प उद्योग है। खेस एक तरह का पतला कंबल है। जिसे हाथ से बनाया जाता है। इसमें किसी तरह के केमिकल या मशीनरी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। स्थानीय भाषा में इसे खेस या खेसला कहते हैं। यह सालों साल चलता है।

खास बात यह है कि यह 100% शुद्ध कपास से तैयार होता है। यह कपड़ा सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा रहता है। इसका उपयोग हर मौसम में किया जा सकता है।

इसके लिए पहले गांव में ही चरखे से सूत हासिल हो जाता था। लेकिन चरखे अब खत्म बराबर हो चुके हैं। ऐसे में इसके लिए धागा पाली की प्रसिद्ध महाराजा श्री उम्मेद मिल से मंगवाया जाता है।

पक्के रंग के धागों की रील हथकरघे में फिट की जाती है। तारों को बुना जाता है। डिजाइन सेट किया जाता है और घंटों हथकरघे पर बैठकर कई दिन में एक खेस तैयार होता है। इसमें किसी भी तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का इस्तेमाल नहीं करते। हाथों से ही सारी प्रक्रिया होती है।

1500 से धागे एक साथ लगाए जाते हैं

मिश्रीमल ने हमें खेस तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में बताया- बुनाई मशीन में 1500 धागे एक साथ लगाए जाते हैं। कारीगर कई घंटों की मेहनत से खेस तैयार करता है। एक जोड़ी खेस की कीमत 500 रुपए तक होती है। इन्हें अब ऑनलाइन भी खरीदा जाने लगा है। यह खेल 8 फीट लंबा और साढ़े 4 फीट चौड़ा होता है।

मिश्रिमल ने बताया- यह काम पिता से विरासत में मिला था। मेरे बेटे अब पढ़ाई और दूसरे रोजगार करने लगे हैं। बेटा दिनेश मोबाइल के जरिए बिजनेस करना सीख गया है। इसलिए वह ऑनलाइन ऑर्डर ले लेता है। 40 साल पहले तक लेटा गांव में हथकरघे की 200 इकाइयां थीं, जिन पर खेस तैयार होता था। अब सिर्फ दो रह गई हैं।

जालोर विधायक जोगेश्वर गर्ग पहनते हैं खेस से बनी जैकेट

जालोर विधायक व विधानसभा मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग को खेस से बने कपड़े खासतौर पर नेहरू जैकेट खास पसंद है। लेटा गांव के हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने सरकारी कार्यक्रमों में सम्मान किए जाने के वक्त शॉल ओढ़ाने की जगह खेस का इस्तेमाल करने के निर्देश भी दे रखे हैं।

वे खुद खेस के जैकेट पहनते हैं। जालोर लोकसभा चुनाव के दौरान भीनमाल में प्रधानमंत्री मोदी प्रचार के लिए तो उन्होंने खेस से बना जैकेट भेंट किया था। प्रदेश के नए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को भी उन्होंने खेस से बनी जैकेट भेंट की है।

Author: JITESH PRAJAPAT

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