जैसलमेर। जिले के एक दर्जन से अधिक गांवों में कर्रा रोग का प्रकोप बढ़ गया है। इससे रोजाना इन गांवों में 2 से 3 गायें काल का ग्रास बन रही है। जिले में अब तक करीब 36 गायों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। पिछले साल भी कर्रा रोग ने गौवंश पर जमकर कहर बरपाया था। पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. उमेश वरगंटीवार ने बताया कि गायों में मृत पशुओं के शवों के अवशेष व हड्डियां आदि खाने से कर्रा रोग (बोटूलिज्म) हो जाता है। मृत पशुओं के शव सड़ने से क्लॉस्ट्रिडियम बॉटूलिज्म जीवाणु द्वारा बोटूलाईनम नामक विष (टोक्सिन) उत्पादित होता है। जिले में उत्पादित होने वाले चारे में फासफोरस तत्व की कमी तथा दुधारु गायों में दुग्ध उत्पादन के कारण उसके शरीर में फास्फोरस तथा अन्य पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिससे इनकी पूर्ति के लिए ये पशु मृत पशुओं की हड्डियां खाना शुरू कर देते है। इससे कर्रा रोग हो जाता है।
मृत गायों के शव का नहीं हो रहा निस्तारण
डॉ. उमेश का कहना था कि मृत गायों के शवों का निस्तारण सही तरीके से नहीं किया जा रहा है। गायों के शवों का उचित तरीके से निस्तारण करके ने इस रोग को हद तक रोका जा सकता है। लोग गायों के शवों को गांव के पास ही खुले में छोड़ रहे है। इससे गायें शवों के अवशेष व हड्डियों को चाटती हैं बाद में स्वस्थ गाय भी कर्रा रोग की चपेट में आ जाती है। उन्होंने कहा कि गायों के शवों को गड्ढा खोद कर दफना देना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इसको लेकर ग्राम पंचायतें व पशुपालन विभाग भी ठोस इंतजाम नहीं कर रहे हैं। वहीं, लोग भी लापरवाही बरत रहे हैं।
बचाव ही कर्रा रोग का उपचार है
अतिरिक्त जिला कलेक्टर परसाराम ने पशु पालन विभाग के अधिकारियों की बैठक लेकर पशुओं को बचाने के लिए पर्याप्त मात्रा में औषधियां उपलब्ध कराने को कहा सााथ ही पशुपालकों को गौवंश को हरा चारा खिलाने एवं इस अवधि के दौरान खुले में न छोड़ने की हिदायत दी। उन्होंने अधिकारियों को कहा कि वे इस रोग से बचाव के उपायों का व्यापक प्रचार-प्रसार करें। उन्होंने पशुपालन विभाग के सभी अधिकारियों को पशु चिकित्सा टीमें गठित कर इस दिशा में गंभीरता से काम करने के निर्देश जारी किए।
1500 से अधिक गौवंश की हुई थी मौत
पिछले साल कर्रा रोग ने गौवंश पर जमकर कहर बरपाया था। जिले की कई ग्राम पंचायतों में पिछले साल 1500 से अधिक दुधारु गायों की मौत हो गई थी। कर्रा रोग होते ही गाय के आगे के पैर जकड़ जाते हैं और गाय चलना बंद कर देती है। मुंह से लार टपकती है और चारा खाना व पानी पीना भी बंद हो जाता है। कर्रा रोग लगने के 4 से 5 दिन में गाय की मौत हो जाती है। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है जिले के डाबला, देवीकोट, सोनू, खुईयाला, पूनमनगर, सगरा, जांवध व मूलाना सहित आसपास के एक दर्जन से अधिक गांवों में कर्रा रोग फैल चुका है।
ये करें उपाय
दुधारु पशुओं को घर में बांध कर रखें मृत पशुओं के शवों का निस्तारण गड्ढा खोद कर करें पशुओं को चरने के लिए बाहर न छोड़े पशु चिकित्सालय एवं पशु चिकित्सा उप केंद्र में उपलब्ध मिनरल मिक्सर पाउडर को ले जाकर दुधारु पशु को प्रतिदिन 50 ग्राम पाउडर व नमक दाने के साथ नियमित रूप से खिलाएं।