जयपुर। आर्च कॉलेज ऑफ डिजाइन एंड बिजनेस की संस्थापक और निदेशक अर्चना सुराना ने पुर्तगाल के लुसोफोना यूनिवर्सिटी में आयोजित इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन फैशन एंड सस्टेनेबिलिटी में ‘रिस्पॉन्सिबल फैशन: स्वाइप राइट’ विषय पर कीनोट स्पीच दी। उन्होंने भारतीय हैंडलूम, सर्कुलर फैशन और पारंपरिक शिल्प की वैश्विक प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर ध्यान आकर्षित किया।
क्युमलस एग्जीक्यूटिव बोर्ड की वाइस प्रेसिडेंट अर्चना सुराना ने बताया- भारतीय हैंडलूम और क्राफ्ट्स, जब आधुनिक तकनीक से जोड़े जाते हैं तो न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी साबित होते हैं। बल्कि स्थानीय कारीगरों को भी आर्थिक मजबूती प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा- वैश्विक फैशन उद्योग, जो कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का लगभग 10% योगदान देता है। जो सस्टेनेबल प्रैक्टिसेस की ओर ले जाना आज के समय की जरूरत है।”
उन्होंने सर्कुलर फैशन की अवधारणा को समझाते हुए बताया- पुराने कपड़ों के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण के माध्यम से 2030 तक सर्कुलर अर्थव्यवस्था का योगदान 5.6 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। उन्होंने तकनीक के उपयोग पर चर्चा करते हुए कहा कि एआई आधारित डिजाइन और स्मार्ट फैब्रिक्स उत्पादन प्रक्रिया को बेहतर बनाने और कचरे को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
आर्च कॉलेज की सस्टेनेबिलिटी पहल
आर्च कॉलेज ऑफ डिजाइन एंड बिजनेस लंबे समय से सस्टेनेबिलिटी और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्यरत है। यहां सोलर एनर्जी कंजरवेशन, वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) को क्रिएटिव डिजाइन सॉल्यूशंस में शामिल किया जाता है।
तीन दिवसीय इस कांफ्रेंस में फैशन, सस्टेनेबिलिटी और तकनीक के क्षेत्र में दुनिया भर के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। अर्चना सुराना के विचारों को व्यापक सराहना मिली। उन्होंने भारतीय फैशन उद्योग की क्षमता और उसके वैश्विक प्रभाव को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया।
- भारतीय हैंडलूम और पारंपरिक शिल्प को सस्टेनेबल समाधान के रूप में प्रस्तुत करना।
- सर्कुलर फैशन और पुन: उपयोग आधारित अर्थव्यवस्था पर जोर।
- तकनीक के माध्यम से फैशन उद्योग में सुधार और स्थिरता का संदेश।