जयपुर। जयपुर, उदयपुर समेत प्रदेश के 7 और जिलों के सरकारी स्कूलों में स्थानीय भाषा में पढ़ाई शुरू होगी। इसमें जयपुर, उदयपुर, पाली, राजसमंद, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ शामिल हैं। इससे पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शिक्षा विभाग सिरोही और डूंगरपुर के कुछ स्कूलों में इसकी शुरुआत वर्ष 2023-24 में हो चुकी है। इन जिलों के शेष स्कूलों में भी नए सत्र से स्थानीय भाषा में पढ़ाई शुरू होगी। राजस्थान के सरकारी स्कूलों में अब ढूंढाड़ी, मेवाड़ी समेत स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई की सुविधा होगी। अगले शैक्षणिक सत्र से प्राथमिक कक्षाओं (कक्षा 1 से कक्षा 5 तक) के स्टूडेंट्स अब स्थानीय भाषाओं में शिक्षा हासिल कर सकेंगे।
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा- स्थानीय भाषा के उपयोग और उसके माध्यम से बच्चों को शिक्षित करना आवश्यक है। बच्चे जब अपने परिवेश में कोई भाषा सीखते हैं, तो उनकी समझ जल्दी विकसित होती है।
बच्चों की सहूलियत का रखा जाएगा ध्यान
राजस्थान में कई तरह की बोलियां बोली जाती हैं। शिक्षक और बच्चों की भाषा अलग-अलग होने के कारण बच्चों को स्कूल की भाषा सीखने में थोड़ी परेशानी होती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम और शुरुआती साल में शिक्षण कार्य स्थानीय भाषा में ही होना चाहिए। ताकि बच्चे आसानी से स्कूल की भाषा को सीख पाएं।
2 जिलों में चल रहा पायलट प्रोजेक्ट
शिक्षा मंत्री ने बताया कि वर्तमान में 2 जिलों (सिरोही और डूंगरपुर) के कुछ स्कूलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में बहुभाषी शिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसे अगले सत्र से प्रदेश के सिरोही-डूंगरपुर सहित 9 जिलों में लागू किया जाएगा। इसके साथ ही सत्र 2026 से ये कार्यक्रम प्रदेश के 25 जिलों में संचालित किया जाना प्रस्तावित है।
फिलहाल जयपुर में ढूंढाड़ी, उदयपुर, चित्तौड़गढ़-प्रतापगढ़ में मेवाड़ी, डूंगरपुर-बांसवाड़ा में वागड़ी, राजसमंद में मेवाड़ी, बागड़ी, सिरोही में मारवाड़ी, पाली में राजस्थानी गोडवाड़ी भाषा बोली जाती है। शिक्षा विभाग इन्हीं स्थानीय भाषाओं में स्टूडेंट्स को पढ़ाने की तैयारी है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में है प्रावधान
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने स्कूल में स्थानीय भाषा में पढ़ाने को लेकर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लागू की है, इसमें यह सब प्रावधान है। प्रारंभिक शिक्षा के बारे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह है कि स्थानीय भाषा, जिसे लोकल भाषा भी कह सकते हैं और मातृभाषा भी, उसमे ही पढ़ाया जाए। दिलावर ने अजमेर में सर्किट हाउस में गुरुवार को यह बात कही।
‘लोकल भाषा में बच्चा आसानी से सीखेगा‘
इस दौरान दिलावर ने बताया कि- जब बच्चा स्कूल में जाना शुरू करता है तो उसे अलग वातावरण मिलता है, अगर वहां बच्चे को स्थानीय भाषा में पढ़ाया जाएगा, तो वह सहज महसूस करेगा और आसानी से सीखेगा। क्योकि बच्चे बोलचाल की भाषा में जल्दी सीखते है। इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कहा गया है कि प्रारंभिक शिक्षा बच्चों की लोकल भाषा में की जाए।
‘जितना छोटा बच्चा, उतना ही ज्यादा सीखेगा‘
शिक्षा मंत्री ने कहा कि बच्चा जितना छोटा होता है। उतना ही ज्यादा सीखना है। जैसे अभिमन्यु अपनी मां की पेट में ही सीख गया था। उन्होंने कहा कि आजकल तो वैज्ञानिक भी कहते हैं कि जब महिला गर्भवती हो तब वह अच्छी कहानी सुनें। ताकि उनके गर्भ में पलने वाले बच्चों को अच्छी जानकारी हासिल हो सके। उन्हें अच्छे वातावरण में रहने के लिए कहा जाता है। मंदिर जाकर सत्संग सुनने के लिए कहा जाता है। ताकि उनके बच्चे में अच्छे संस्कार आ सके।