जयपुर। महाराष्ट्र के सोलापुर में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के केस मिलने के बाद जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल में भी 3 केस आ गए हैं। डॉक्टर्स के मुताबिक ये बीमारी पुरानी है, लेकिन अनहाइजनिक कंडीशन में इसके केस बढ़ते हैं। इस बीमारी में मरीज के नर्वस सिस्टम पर अटैक होता है, जिसके कारण मरीज में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर संबंधित परेशानियां आ रही हैं।
एसएमएस मेडिकल कॉलेज में न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोफेसर डॉ. दिनेश खंडेलवाल ने बताया- वर्तमान में एसएमएस हॉस्पिटल में भी कुछ केस GBS के है। ये रेगुलर आते रहते हैं। इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण अस्वच्छ खाना-पानी है। अक्सर लोग बाहर दुकानों पर चाट-पकौड़ी, पानी-पुरी आदि खाते हैं। उनके साथ ठंडी चटनी, पानी आदि पीते हैं। इन चीजों से इस तरह के केस ज्यादा फैलने की संभावना होती है।
एंटीबॉडी ही बन जाती है शरीर की दुश्मन
डॉ. दिनेश खंडेलवाल ने बताया- इस बैक्टीरिया से प्रभावित मरीज में बनने वाली एंटीबॉडी ही शरीर की दुश्मन बन जाती है। ये बैक्टिरिया किसी भी तरह (खाना, पानी या सांस) ह्यूमन बॉडी में प्रवेश करता है, तो इससे लड़ने के लिए हमारा शरीर एंटीबॉडी बनाता है। खास बात ये है कि इन बैक्टिरिया के मॉलिक्यूल्स ऐसे होते है वो इंसान के शरीर के नर्व से बिल्कुल मिलते-जुलते होते हैं।
जब हमारी बॉडी इन मॉलिक्यूल्स से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाती है, यही एंटीबॉडी बैक्टिरिया के साथ-साथ ह्यूमन नर्व पर भी अटैक करने लगती है। ये उनकी कवरिंग को डेमेज करने लगती है, जिससे नर्व में करंट का फ्लो कम होने लगता है और हमारे हाथ-पांव में इसका प्रभाव दिखने लगता है।
कई बार ये नर्व कवरिंग को इतना ज्यादा डेमेज कर देता है कि इंसान पैरालाइज हो जाता है। इस केस में कई बार इंसान इतना ज्यादा पैरालाइज हो जाता है कि उसे सांस लेने में भी तकलीफ होने लगती है। ऐसी स्थिति में मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट पर लम्बे समय तक भी रखना पड़ जाता है। ज्यादातर मामले में मरीज ठीक हो जाते है, लेकिन 5-8 फीसदी केस में मरीज ज्यादा सीवियर हो जाता है तो उसकी रिकवरी नहीं होती है और उसकी डेथ भी हो जाती है।
प्रभावित होने पर ये दिखते है लक्षण
इस बैक्टिरिया से संक्रमित मरीज में लक्षण के तौर पर शुरुआत में सुबह उठते समय ज्यादा थकान, चलने में दिक्कत महसूस हो रही है। हाथ-पांव में झंझनाहट होने लगती है, जमीन पर बैठे व्यक्ति को उठने में परेशानी होती है। वहीं मसल पावर बहुत तेजी से कम होने लगती है। कई बार मरीज के आवाज में भी बदलाव होने लगता है।